महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में पड़ने वाला लातूर जिला इन दिनों सूखे के कारण सुर्खियों में है। जिले के लातूर शहर और सात अन्य कस्बों की कुल आबादी करीब 7 लाख है। इसमें 5 लाख तो लातूर शहर में ही रहते हैं। इसके अलावा ग्रामीण इलाकों की आबादी 18 लाख बताई जाती है। लातूर सिटी के नगर निगम में 35 वार्ड हैं, जबकि लातूर जिले की बात करें तो इसमें चार नगर परिषद और पांच नगर पंचायतें आती हैं। बीते तीन-चार साल से इस इलाके में बारिश बहुत कम हो रही है। इस क्षेत्र में सालाना 50 प्रतिशत कम वर्षा हो रही है। ऐसे में पेड़ों के सिर्फ तने बाकी रह गए हैं। खेत सूखे पड़े हैं और कुएं खाली हैं। नदियां सिर्फ नाम मात्र के लिए बची हैं। लातूर शहर के पांच लाख लोगों का मुख्य जीवन स्रोत मंजारा बांध फरवरी से ही सूखा पड़ा हैं। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के सेक्रेटरी डॉक्टर कल्याण बारमाणे ने बताया कि नगर निगम का पानी जो कि 10 से 15 दिन में कभी एक बार आ जाया करता था, लेकिन पिछले 3 महीने से पानी की एक भी बूंद नहीं आई।
70 वर्षीय सतारा पठान से जब पूछा गया तो वह बोले, ‘पानी कहां है…दिन-रात हम लोग पानी का इंतजार करते हैं पर पानी नहीं आता।’ वह लातूर शहर के उस्मानपुरा इलाके में अपने 16 सदस्यों के परिवार के साथ रहते हैं।
लातूर के म्युनिसिपल कमिश्नर सुधाकर तेलांग ने बताया कि 35 वार्डों में 70 टैंकर पानी की सप्लाई करते हैं। ये टैंकर 6 से 8 दिनों में एक बार भेजे जाते हैं और इनके जरिए हर परिवार को 200 लीटर पानी उपलब्ध कराया जाता है। उन्होंने बताया कि लातूर शहर में करीब 200 प्राइवेट टैंकर और 50 टैंकरों के जरिए एनजीओ पानी उपलब्ध कराते हैं। तेलांग ने बताया कि निगम के टैंकर्स मुफ्त में पानी उपलब्ध कराते हैं, जबकि प्राइवेट टैंकर्स 1000 लीटर पानी 200 रुपए में बेचते हैं।
स्थानीय निवासी और आर्ट ऑफ फाउंडेशन के साथ जुड़े मकरंद जाधव कहते हैं, ‘पानी टैंकर्स यहां एक बिजनेस बन गया है। वे फोन कॉल पर इन्हें उपलब्ध कराते हैं।’ जाधव और उनके फाउंडेशन ने NAAM (एक्टर नाना पाटेकर का संगठन) जैसे अन्य एनजीओ के साथ मिलकर मुहिम की शुरुआत की है। इस अभियान का मकसद मंजारा नदी का जलस्तर बढ़ाना है, जिससे कि सालभर पानी मिल सके।
बहरहाल, अब लातूर जिले के 943 गांवों की बात करते हैं, जहां के हालात शहर से अलग नहीं हैं। 943 गांवों में 244 पूरी तरह से पानी के टैंकर्स पर निर्भर हैं। यहां करीब वाटर प्रोजेक्ट हैं, जो कि 700 गांवों को जलापूर्ति करते हैं। इनमें से तीन सूख चुके हैं। इनके नाम हैं- तवारजा, मसालगा और वाटी। इन तीनों के अलावा जो पांच 5 बचे हैं, वे भी सिर्फ एक महीना और जलापूर्ति कर सकते हैं। लातूर जिले में 131 छोटे बांध भी हैं, जिनमें पानी तेजी से घट रहा है। लातूर जिले के 244 गांवों में टैंकर से सप्लाई हो जाती है, लेकिन अन्य गांवों के बहुत से लोगों को कुंए और तालाब पर निर्भर रहना पड़ता है। एक तो इनका पानी पीने लायक नहीं होता है, दूसरा कई बार कुंओं में सांप और अन्य जहरीले जीवों का भी खतरा बना रहता है।
50 साल के डागदू गायकवाड़ से जब पूछा गया कि क्या आप पानी को उबालकर पीते हैं, तो वह कहते हैं, ‘हम पानी को कैसे उबाल सकते हैं, इतना पैसा कहां है हमारे पास, जो पानी को उबालकर बबार्द कर दें।’ सूखा स्थानीय निवासियों के लिए दुस्वप्न बनकर रह गया है। ऐसे हालात में प्रशासन पानी के हर स्रोत का दोहन का हरसंभव प्रयास कर रहा है। डिप्टी कलेक्टर नारायण उबाले ने बताया कि जिला प्रशासन ने 1154 कुंओं को अपने नियंत्रण में ले लिया है। कुंओं के मालिकों को प्रशासन पैसा देगा और तब तक इनका इस्तेमाल करेगा, जब तक हालाता सामान्य नहीं हो जाते।
ऐसे हालात में जब राज्य सरकार ने केंद्र से मदद मांगी तो रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने बिना और समय गंवाते हुए वाटर ट्रेन को हरी झंडी दिखा दी। इसे राजस्थान के कोटा में जलदूत कहा जाता है। फिलहाल इसका ट्रायल चल रहा है। शुक्रवार शाम तक 10 डिब्बों वाली वाटर ट्रेन 20 लाख लीटर पानी लातूर स्टेशन पहुंचा चुकी है। लातूर के जिला कलेक्टर पांडुरंग पोले ने बताया कि ट्रेन से पानी निकालने में करीब 3 घंटे का समय लगता है।
जिला कलेक्टर ने कहा कि अगर 50 डिब्बों वाली ट्रेन से पानी लाया जाए तो एक दिन में ट्रेन में 25 लाख लीटर पानी ला सकती है। उन्हें लातूर शहर में प्रतिदिन 450 टैंकर भेजने होते हैं और 50 डिब्बे वाली ट्रेन 450 टैंकर पानी उपलब्ध करा सकती है। दूसरी ओर रेलवे अधिकारियों का कहना है कि हर दूसरे और तीसरे दिन पानी ट्रेन से पहुंचाना उनके लिए संभव है, क्योंकि 50 डिब्बों वाली ट्रेन से पानी निकालने में समय भी लगता है।