भीड़तंत्र के द्वारा हिंसा या ‘मॉब लिंचिंग’ को लेकर चौराहों-चौपालों से लेकर संसद-सर्वोच्च अदालत तक सरगर्म हैं। हाल में देश के 49 बौद्धिकों ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर ऐसी घटनाओं पर चिंता जताते हुए कड़े कानून की जरूरत बताई। इस पत्र पर प्रधानमंत्री या उनका कार्यालय कोई जवाब दे पाता, उसके पहले बौद्धिकोंं-सिनेमा से जुड़े लेखक-कलाकारों के 62 लोगों के अन्य एक समूह ने प्रतिक्रियात्मक पत्र जारी कर दिया। समूह-62 ने 49 बौद्धिकों पर सवाल दागे कि माओवादी हिंसा, कश्मीरी अलगाववादियों की कारगुजारियों और देशद्रोह के मामलों पर आप लोगों की चुप्पी क्यों? दूसरी ओर, सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान, बिहार, उत्तर प्रदेश, असम, गुजरात, कर्नाटक, झारखंड, तमिलनाडु, कश्मीर, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, यहां तक कि राजधानी दिल्ली में भीड़ हिंसा की बढ़ती घटनाओं के मद्देनजर अपने एक साल पहले के आदेश को कड़ाई से लागू करने के लिए केंद्र सरकार, मानवाधिकार आयोग और 11 राज्यों को नोटिस जारी कर जवाब-तलब किया।
सुप्रीम कोर्ट के ताजा निर्देश
देश में भीड़ हिंसा की बढ़ती घटनाओं पर चिंता जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पिछले वर्ष ऐसी घटनाएं रोकने के लिए विस्तृत आदेश दिए थे। हाल में ‘एंटी करप्शन काउंसिल ऑफ इंडिया ट्रस्ट’ नामक संगठन ने भीड़ की हिंसा पर अंकुश लगाने के निर्देशों पर अमल नहीं करने का सवाल उठाते हुए याचिका दायर की। इस पर प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायाधीश दीपक गुप्ता के पीठ ने गृह मंत्रालय और राज्य सरकारों को नोटिस जारी किए।
शीर्ष अदालत ने 17 जुलाई, 2018 को सरकारों को तीन तरह के उपाय- एहतियाती, उपचारात्मक और दंडात्मक-करने के निर्देश दिए थे। राज्य सरकारों से कहा था कि वे प्रत्येक जिले में पुलिस अधीक्षक स्तर के वरिष्ठ अधिकारियों को नोडल अधिकारी मनोनीत करें। यदि वह निर्देशों का पालन करने में विफल रहता है तो इसे जान-बूझकर लापरवाही करने या कदाचार का कृत्य माना जाए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि गोरक्षा के नाम पर हिंसा और भीड़ हिंसा में हत्या की घटनाओं पर अंकुश के लिए उसके निर्देशों पर अमल किया जाए।
सरकार ने क्या कदम उठाए
केंद्र सरकार ने 23 जुलाई 2018 को केंद्रीय गृह सचिव की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय कमेटी बनाई। इस कमेटी ने चार हफ्तों में अपनी रिपोर्ट दी। कमेटी की सिफारिशों पर विचार के लिए सरकार ने तत्कालीन गृह मंत्री की अध्यक्षता में एक मंत्री समूह (जीओएम) का गठन किया। जीओएम की रिपोर्ट के आधार पर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने चार जुलाई 2018 को कहा कि राज्य सरकारों को परामर्श जारी किया गया है। भारतीय संवैधानिक प्रणाली के मुताबिक ‘पुलिस’ और ‘कानून व्यवस्था’ राज्य के विषय हैं। अपराध पर नियंत्रण, कानून व्यवस्था की बहाली और नागरिकों के जीवन और सुरक्षा की जिम्मेदारी राज्य सरकारों पर है।
भीड़ हिंसा की हकीकत
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अपनी एक रिपोर्ट में माना कि वर्ष 2014 से लेकर 3 मार्च 2018 के बीच नौ राज्यों में भीड़ हिंसा की 40 घटनाओं में 45 लोगों की मौत हो गई। हांलाकि मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि उनके पास इस बाबत विश्वनीय तथ्य नहीं हैं कि ये घटनाएं गौ रक्षकों की गुंडागर्दी, सांप्रदायिक या जातीय विलेष या बच्चा चुराने की अफवाह की वजह से ही घटी हैं। 12 राज्यों में ऐसी घटनाओं से संबंधित मुकदमों में दो आरोपियों को सजा सुनाई गई। विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर काम करने वाली संस्था ‘इंडियास्पेंड’ की रिपोर्ट है कि वर्ष 2012 से 2019 में अब तक सामुदायिक घृणा से प्रेरित 128 घटनाएं हो चुकी हैं, जिनमें 47 लोगों की मृत्यु हुई है। ‘इंडियास्पेंड’ के मुताबिक, 2010 के बाद से नफरत जनित अपराधों की 87 घटनाएं हुई हैं। वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने गौ रक्षकों पर कार्रवाई को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका के मद्देनजर अपने लिखित जवाब में इन आंकड़ों का उल्लेख किया है।
भीड़ द्वारा लोगों को पीट-पीट कर मार डालने की घटनाओं में वृद्धि हो रही है और सरकारें इस समस्या से निपटने के लिए शीर्ष अदालत द्वारा जुलाई, 2018 में दिए गए निर्देशों पर अमल के लिए कोई कदम नहीं उठा रहीं।
-अनुकूल चंद्र प्रधान, सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता के वकील
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों पर अमल शुरू कर दिया है। भीड़ हत्या के मामले सदियों से चले आ रहे हैं। यह समाज का हिस्सा है। मॉब लिंचिंग पर कानून का ढांचा तैयार करने को लेकर सरकार काम कर रही है।
-अरविंद वाजपेयी, प्रवक्ता, लोक जनशक्ति पार्टी