जुलाना से विनेश फोगाट ने अपना सफल पॉलिटिकल डेब्यू किया है, कुश्ती के अखाड़े में अपने प्रतिद्वंदियों को चित करने के बाद उन्होंने राजनीति में भी बीजेपी प्रत्याशी योगेश कुमार को 6015 वोटों से हरा दिया है। यह जीत अच्छी है, विनेश के कुछ उदेश्यों को पूरा करती है, लेकिन इसे अप्रत्याशित नहीं कहा जा सकता। उनके समर्थक मानकर चल रहे थे कि विनेश बड़े अंतर से बीजेपी उम्मीदवार को मात देंगी, लेकिन जुलाना में कांटे की टक्कर रही और कई मौकों पर वे पिछड़ी भीं।
ऐसे में अब विनेश फोगाट ने जीत दर्ज कर अपना सियासी सफर तो शुरू कर दिया है, लेकिन कई चुनौतियां उनके दरवाजे पर तैयार खड़ी हैं। समझने वाली बात यह भी है कि विनेश के लिए जुलाना से जीत ज्यादा खास तब रहती अगर हरियाणा में कांग्रेस की सरकार बन जाती। लेकिन अब सरकार बीजेपी की बनी है और वे चुनाव जीत गई हैं। यानी कि बिना कांग्रेस के ज्यादा समर्थन के विनेश को अब अपने विधायकी सफर की शुरुआत करनी है। यहां जानने की कोशिश करते हैं कि चुनाव जीतने के बाद भी विनेश फोगाट के सामने पहाड़ जैसी चुनौतियां कैसे खड़ी हैं-
विनेश जीतीं, लेकिन कांग्रेस हार गई
विनेश फोगाट को अपनी जीत का पूरा स्वाद कभी नहीं मिलने वाला है। उनकी जीत को पूरा तब माना जाता अगर उनके पक्ष में बनी सहानुभूति का असर कांग्रेस को पूरे राज्य में होता। यहां तो जाट बेल्ट में ही कांग्रेस को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। दोगुनी से भी ज्यादा सीटें तो बीजेपी ही पिछली बार की तुलना में जीत गई है। ऐसे में सवाल तो उठेगा कि विनेश फोगाट को शामिल कर कांग्रेस को ऐसा क्या हासिल हो गया? या कहना चाहिए विनेश ने कांग्रेस को ऐसा क्या फायदा दे दिया?
मोदी का कम प्रचार भी हरियाणा में कमल खिलाने में रहा असरदार
अब कांग्रेस को भी इस बात का अहसास है कि उसे चुनाव में विनेश फैक्टर से वो फायदा नहीं मिला जिसकी उम्मीद लगाई गई थी। इससे एक संदेश यह भी जाता है कि ओलंपिक के वक्त जरूर पूरा देश और हरियाणा की जनता विनेश के साथ खड़ी थी, लेकिन ‘नेता विनेश’ के साथ हरियाणा की जनता ज्यादा मजबूती के साथ खड़ी नहीं हुई। कांग्रेस ने विनेश से सिर्फ जुलाना सीट जीतने की उम्मीद नहीं लगाई थी बल्कि उनके सहारे कई दूसरे इलाकों में सेंधमारी की तैयारी थी। लेकिन वैसा नहीं हुआ, ऐसे में विनेश की लोकप्रियता को लेकर कांग्रेस के मन में भी संशय होगा। उस संशय का मतलब यह होगा कि भविष्य में विनेश को शायद राजनीति में आगे बढ़ने के वो अवसर ना मिलें जिनकी आस उन्हें हो।
आसान नहीं विधायक बनना, विनेश के लिए ट्रांजिशन मुश्किल
विनेश फोगाट ने राजनीति में कदम जरूर रख दिया है, चुनाव में भी जीत दर्ज की है, लेकिन यह कह देना कि वे राजनेता बन गई हैं, इस नई जिम्मेदारी के लिए पूरी तरह सज हैं, अभी कहना मुश्किल है। असल में विनेश फोगाट का जीवन तो अखाड़ों में बीता है, ट्रेनिंग में खूब पसीना बहाया है। उनका फोकस तो सिर्फ अपनी कुश्ती पर रहा है। लेकिन राजनीति में कुछ भी अपना नहीं होता है, यहां तो जनता की सेवा, जनता के मुद्दे ही सबकुछ हैं। यहां तो एक नेता को 24 घंटा जनता के लिए उपलब्ध रहना होता है।
बीजेपी का मुस्लिम कार्ड नकारा, कांग्रेस का ‘हिंदुत्व’ भी रिजेक्ट
ऐसे में विनेश फोगाट के लिए यह ट्रांजिशन इतना आसान नहीं। कितनी आसानी से वे नेता के जीवन को स्वीकार कर पाएंगी, यही उनकी असल चुनौती भी रहने वाली है। उन्हें तो खुद को तैयार करना होगा राजनीति के लिए, सियासी दांव-पेच समझने के लिए। बीजेपी इतनी आसानी से उन्हें छोड़ने नहीं वाली, ऐसे में कैसे और किस अंदाज में वे पलटवार करेंगी, यह देखना दिलचस्प रहेगा। इसे विनेश की एक चुनौती के रूप में भी देखा जाएगा।
कुश्ती में वापसी करना मुश्किल
विनेश फोगाट के तमाम प्रशंसक जरूर चाहते हैं कि 2028 के ओलंपिक में भी वे कुश्ती लड़ें, अपनी दावेदारी ठोंके। लेकिन नेता विनेश फोगाट के लिए ऐसा करना अब काफी मुश्किल हो जाएगा। असल में नेता विनेश फोगाट के लिए मैट पर वापसी चुनौती इसलिए भी बनेगा क्योंकि राजनीति में आने की वजह से उनकी ट्रेनिंग प्रभावित हो जाएगी। अभी तक तो वे घंटों पसीना बहाती थीं, लेकिन अब उन्हें जनता के काम में पसीना बहाना होगा। ऐसे में किस तरह से वे दोनों चीजों में तालमेल बैठाएंगी, यह देखना जरूरी रहेगा।
इसके ऊपर अगर विनेश कुश्ती जारी रखने का फैसला करें तो उनकी जिम्मेदारी भी किसी और को निभानी पड़ेगी। चेहरा विनेश का रहे, लेकिन काम तो कोई दूसरा भी कर सकता है। अगर ऐसी स्थिति बनती है तो विनेश शायद फिर कुश्ती में कदम रखना चाहें, लेकिन तब बीजेपी कैसे उस मुद्दे को भुनाएगी, किस तरह से वो दगाबाजी जैसे नेरेटिव को आगे बढ़ाएगी, उसका सामना करने के लिए भी तैयार रहना पड़ेगा।
बीजेपी को विनेश से क्या फायदा?
विनेश फोगाट में बतौर राजनेता अभी अनुभव की काफी कमी है, इसे उनके लिए एक चुनौती के रूप में देखा जाए और बीजेपी के लिए अवसर के रूप में। यहां कंगना रनौत का उदाहरण एकदम सटीक साबित होता है। बतौर एक्ट्रेस तो उन्होंने जब भी विवादित बयान दिए, बीजेपी को उससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ा। लेकिन अब सांसद बनने के बाद वे धड़ल्ले से ऐसे बयान दे रही हैं, कई बार पार्टी लाइन से अलग जा रही हैं, बीजेपी के लिए यह बड़ा सिरदर्द बन चुका है। जानकार इसे कंगना की अनुभवहीनता के रूप में देखते हैं क्योंकि उन्हें इस बात का अहसास नहीं कि राजनीति में कौन सा मुद्दा कब बड़ा जाएगा।
अब विनेश फोगाट के साथ भी वही चीज है, उनमें अनुभव की कमी है, इसके ऊपर बृजभूषण के साथ उनके विवाद चल रहे हैं। ऐसे में अगर उन्होंने ठीक तरह से तालमेल नहीं बैठाया, उनके साथ-साथ कांग्रेस के लिए भी मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं।
विनेश के रहने से गैर जाट वोट एकमुश्त?
हरियाणा के इस बार के चुनाव में एक दिलचस्प पहलू देखने को मिला है, कांग्रेस ने जाट वोट तो गंवाए ही हैं, गैर जाट वोट भी एकमुश्त तरीके से उसके खिलाफ पड़ा है। जानकार उसका एक कारण खुद विनेश फोगाट को ही मानते हैं। विनेश एक रेसलर हैं, जाट हैं और एक तरह से पहलवान समुदाय का इस चुनाव में प्रतिनिधित्व भी कर रही थीं। लेकिन जरूरत से ज्यादा इस मुद्दे को उठाने की वजह से दूसरी जातियां असहज हो गईं और उन्होंने पूरी तरह बीजेपी के पक्ष में वोटिंग की।
अब यह हाल तो वोटिंग के दौरान रहा, लेकिन अब जब विनेश जीत चुकी हैं, कांग्रेस की राह इससे कोई आसान नहीं होने वाली। गैर-जाट वोटों को अपने पाले में करने के लिए उनके पास कोई रणनीति दिखाई नहीं दे रही, इसके ऊपर विनेश खुद सिर्फ एक जाति तक सीमित हैं, वहां भी उनको ज्यादा समर्थन सिर्फ पहलवान समुदायों के बीच मिल रहा है। ऐसे में उनका सियासी रूप से सीमित प्रभावी होना विनेश के लिए तो चुनौती है ही, आने वाले समय में कांग्रेस के लिए भी सिरदर्दी बन सकता है।