उत्तरकाशी की सिल्कयारा सुरंग में फंसे मजदूर मंगलवार की रात जैसे ही बाहर निकले देशवासियों ने राहत की सांस ली। सुरंग से निकले कुछ श्रमिकों के चेहरों पर मुस्कान थी तो कुछ के चेहरे 17 दिन की परेशानियों के बाद थके हुए दिख रहे थे। सुरंग के बाहर मौजूद लोगों ने जयकारा लगाया और लोगों ने उन एंबुलेंस का स्वागत किया जो श्रमिकों को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में ले गईं, जबकि स्थानीय लोगों ने मिठाई बांटी। वहीं, मजदूरों ने टनल के भीतर बिताए गए समय को याद करते हुए अपने अनुभव बांटे।

क्षेत्र में डेरा डाले चिंतित श्रमिकों के रिश्तेदार भावुक थे। कई दिन की अनिश्चितता के बाद भी वे श्रमिकों के लिए एकजुट थे। मौके पर मौजूद कई लोगों ने कहा कि वे घर वापस जाकर अब दिवाली मनाएंगे क्योंकि परिवारों पर पड़ी निराशा की छाया दूर हो गई है।

ताज़ी हवा की गंध एक नए जीवन की तरह महसूस हुई- श्रमिक

सुरंग से बचाए गए झारखंड के खूंटी जिले के निवासी 32 वर्षीय चमरा ओरांव ने बताया कि अपने फोन पर लूडो खेलना, नेचुरल पानी में स्नान, मुरमुरे और इलायची के दानों का स्वाद- उत्तरकाशी सुरंग के अंदर बिताए गए लंबे घंटों ने जीवन पर एक अमिट छाप छोड़ी है। अस्पताल ले जाते समय द इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए, ओरांव ने कहा कि ताज़ी हवा की गंध एक नए जीवन की तरह महसूस हुई। उन्होंने कहा कि हमें बचाने का श्रेय 17 दिनों तक अथक प्रयास करने वाले बचावकर्मियों और ईश्वर को जाता है।

ओरांव ने कहा, “जोहार! हम अच्छे हैं। हम भगवान में विश्वास करते थे और इससे हमें ताकत मिली। हमें भी विश्वास था कि 41 लोग फंसे हैं तो कोई न कोई हमें बचा लेगा। मैं अपनी पत्नी से बात करने के लिए इंतजार नहीं कर सकता।” उनके तीन बच्चे खूंटी में उनका इंतजार कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि वह प्रति माह 18,000 रुपये कमाते हैं और केवल समय ही बताएगा कि वह वापस आते हैं या नहीं। फंसे हुए 41 लोगों में सबसे ज्यादा पंद्रह श्रमिक झारखंड के थे।

मजदूर बोले- हमने उम्मीद नहीं खोई

श्रमिक ओरांव ने याद करते हुए कहा कि वह 12 नवंबर की सुबह काम कर रहे थे, तभी उन्होंने जोरदार आवाज सुनी और मलबा गिरते देखा। उन्होंने कहा, “मैं अपनी जान बचाने के लिए भागा लेकिन गलत दिशा में फंस गया। जैसे ही यह साफ हो गया कि हम लंबे समय तक टनल के अंदर रहेंगे, हम बेचैन हो गए, भूखे हो गए लेकिन हमने मदद के लिए चुपचाप प्रार्थना की। मैंने कभी उम्मीद नहीं खोई।”

24 घंटे बाद मिला खाना

ओरांव ने कहा कि करीब 24 घंटे बाद अधिकारियों ने मुरमुरे और इलायची के दाने भेजे। मजदूर ने बताया, “जब हमने पहला निवाला खाया, तो हमें लगा कि कोई ऊपर वाला हमारे पास आया है। हम बहुत खुश थे। हमें आश्वासन दिया गया था कि हमें बचा लिया जाएगा लेकिन समय गुजारने की जरूरत थी। हम फोन पर लूडो खेलने लगे, जिसे हम हमें दी गई सप्लाई से चार्ज कर सकते थे, हालांकि नेटवर्क नहीं होने के कारण हम किसी को कॉल नहीं कर सकते थे। हमने आपस में बात की और एक-दूसरे को जाना।”

यह पूछे जाने पर कि वो सब खुद को राहत देने और साफ-सफाई के लिए क्या करते थे, मजदूर ने कहा, “हमने पहाड़ी के प्राकृतिक पानी का इस्तेमाल करके स्नान किया। खुद को राहत देने के लिए हमने एक जगह तय कर ली थी।” ओरांव ने कहा कि वह शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ हैं, हालांकि वह घर पहुंचेंगे और तय करेंगे कि वह आगे क्या करेंगे।