Uttarkashi Mosque Controversy: उत्तरकाशी में दशकों पुरानी मस्जिद को लेकर तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है। एक दिसंबर को हिंदू संगठनों ने महापंचायत आयोजित करने का फैसला किया है। इस महापंचायत का एजेंडा यह है कि ढांचे को गिराने पर दबाव डाला जाए। सरकार की तरफ से महापंचायत की इजाजत नहीं मिली है लेकिन संयुक्त सनातन धर्म रक्षा संघ और विश्व हिंदू परिषद जैसे संगठन तय तारीख के हिसाब से कार्यक्र करने पर जोर दे रहे हैं। इस बीच हाई कोर्ट में धामी सरकार ने अपना पक्ष रखा है।
दरअसल, राज्य सरकार हाई कोर्ट में राज्य की पुष्कर सिंह धामी सरकार ने बताया है कि उसने इस महापंचायत को अभी कोई इजाजत नही दी है। इसके अलावा राज्य सरकार ने उत्तरकाशी एसपी अमित श्रीवास्तव का उनकी नियुक्ति के तीन महीने के भीतर ही ट्रांसफर कर दिया है।
एसपी अमित श्रीवास्तव का किया गया ट्रांसफऱ
एक महीने पहले उत्तरकाशी में विरोध प्रदर्शन करने वाली भीड़ जब तय रूट से हटक मस्जिद की ओर बढ़ गई थी, तो पुलिस ने उन्हें रोका था। नतीजा ये हुआ था कि पुलिस पर भीड़ ने पथराव किया था। घटना के लगभग एक महीने बाद एसपी अमित श्रीवास्तव का ट्रांसफर कर दिया गया है।
बुधवार को हाई कोर्ट के समक्ष अपने स्पष्टीकरण में राज्य की पुष्कर सिंह धामी सरकार ने कहा कि मस्जिद को पर्याप्त सुरक्षा प्रदान की गई है। कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए मस्जिद को सुरक्षा देने का आदेश दिया था और सरकार से कहा था कि नफरत फैलाने वाले लोगों के खिलाफ एक्शन लिया जाए।
मस्जिद गिराने की मांग को लेकर हिंदू संगठनों का उग्र प्रदर्शन
24 घंटे निगरानी की उठी थी मांग
याचिकाकर्ताओं के वकील कार्तिकेय हरि गुप्ता ने कहा कि राज्य ने अदालत को आश्वासन दिया है कि धार्मिक ढांचे को चौबीसों घंटे निगरानी के साथ पर्याप्त सुरक्षा प्रदान की जा रही है। इस दौरान कोर्ट ने एक बार फिर यह दोहराया कि कानून के शासन वाले देश में विध्वंस की धमकिया और अभद्र भाषा अस्वीकार्य है।
Sambhal Masjid को लेकर अखिलेश यादव क्या बोले?
याचिकाकर्ताओं के क्या हैं तर्क?
अल्पसंख्यक सेवा समिति के अध्यक्ष मुशर्रफ अली और इस्तियाक अहमद ने अपनी याचिका में कथित मुस्लिम विरोधी भाषणों पर चिंता जताई और भटवारी रोड स्थित जामा मस्जिद सहित अल्पसंख्यक संपत्तियों के लिए राज्य से सुरक्षा की मांग की। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि मस्जिद वक्फ बोर्ड के अंतर्गत आती है और उनके पास इसे साबित करने के लिए सबूत हैं।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि उनके पास 1969 का एक बिक्री विलेख और 1987 की एक राजपत्र अधिसूचना है जो बताती है कि यह मस्जिद वक्फ की जमीन पर ही बनी है। उत्तराखंड से जुड़ी अन्य खबरों के लिए इस लिंक पर क्लिक करें।