उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में धराली में बादल फटने के कारण खीर गंगा नदी में बाढ़ आने से कई व्यक्तियों की मृत्यु हो गयी और कई मकान और होटल तबाह हो गए। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने धराली में हुए भारी नुकसान पर दुख जताया और प्रभावितों के प्रति संवेदना प्रकट की है। उन्होंने कहा कि सेना, एसडीआरएफ, एनडीआरएफ और जिला प्रशासन की टीम राहत- बचाव कार्यों में जुटी हैं। पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने भी सीएम धामी से बात कर हालात का जायजा लिया। आइए जानते हैं क्या होता है Cloudburst और कैसे होती है बादल फटने की घटना?
क्या होता है Cloudburst?
बादल फटना भारी बारिश की गतिविधि को कहते हैं। हालांकि, बहुत भारी बारिश की सभी घटनाएं बादल फटना नहीं होतीं। बादल फटने की एक बहुत ही विशिष्ट परिभाषा है: लगभग 10 किमी x 10 किमी क्षेत्र में एक घंटे में 10 सेमी या उससे अधिक बारिश को बादल फटने की घटना के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। इस परिभाषा के अनुसार, उसी क्षेत्र में आधे घंटे की अवधि में 5 सेमी बारिश को भी बादल फटने की श्रेणी में रखा जाएगा।
बादल फटने की घटना के दौरान, किसी स्थान पर एक घंटे के भीतर वार्षिक वर्षा का लगभग 10% वर्षा हो जाती है। औसतन, भारत में किसी भी स्थान पर एक साल में लगभग 116 सेमी वर्षा होने की उम्मीद की जा सकती है।
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बादल फटना कितना आम है?
बादल फटना कोई असामान्य घटना नहीं है, खासकर मानसून के महीनों में। ये घटनाएं ज़्यादातर हिमालयी राज्यों में होती हैं जहां स्थानीय स्थलाकृति, विंड सिस्टम और निचले व ऊपरी वायुमंडल के बीच टेम्परेचर ग्रेडिएंट ऐसी घटनाओं को बढ़ावा देते हैं। हालाँकि, हर घटना जिसे बादल फटना कहा जाता है, वास्तव में परिभाषा के अनुसार बादल फटना नहीं होती। ऐसा इसलिए है क्योंकि ये घटनाएँ काफी लोकल होती हैं। ये बहुत छोटे क्षेत्रों में होती हैं जहां अक्सर बारिश मापने वाले उपकरण नहीं होते।
भारतीय मौसम विभाग वर्षा की घटनाओं का पूर्वानुमान तो काफी पहले लगा देता है, लेकिन वह वर्षा की मात्रा का अनुमान नहीं लगाता—दरअसल, कोई भी मौसम विज्ञान एजेंसी ऐसा नहीं करती। पूर्वानुमान हल्की, भारी या बहुत भारी वर्षा के हो सकते हैं, लेकिन मौसम वैज्ञानिकों के पास यह अनुमान लगाने की क्षमता नहीं होती कि किसी भी स्थान पर कितनी वर्षा होने की संभावना है।
बादल फटने की घटनाओं का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता
परिणामस्वरूप, बादल फटने की घटनाओं का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता। किसी भी पूर्वानुमान में बादल फटने की संभावना का उल्लेख नहीं होता। लेकिन भारी से बहुत भारी वर्षा की घटनाओं की चेतावनी दी जाती है, और इनका पूर्वानुमान आमतौर पर चार से पांच दिन पहले लगाया जाता है। अत्यधिक भारी वर्षा की संभावना, जिसके परिणामस्वरूप बादल फटने जैसी स्थितियाँ पैदा हो सकती हैं, का पूर्वानुमान 6 से 12 घंटे पहले लगाया जाता है।
क्या बादल फटने की घटनाएं बढ़ रही हैं?
ऐसा कोई रुझान नहीं है जो यह दर्शाता हो कि आईएमडी द्वारा परिभाषित बादल फटने की घटनाएं बढ़ रही हैं। हालांकि, अत्यधिक बारिश की घटनाएं और साथ ही एक्सट्रीम वेदर की घटनाएं, न केवल भारत में, बल्कि दुनिया भर में बढ़ रही हैं। हालाँकि भारत में वर्षा की कुल मात्रा में कोई खास बदलाव नहीं आया है, फिर भी कम समय में वर्षा का अनुपात बढ़ रहा है। इसका मतलब है कि बारिश के दौर बहुत ज़्यादा हैं, और बारिश के मौसम में भी लंबे समय तक सूखे के दौर के बीच-बीच में बारिश होती रहती है। जलवायु परिवर्तन के कारण इस तरह का पैटर्न यह दर्शाता है कि बादल फटने की घटनाएं भी बढ़ रही हैं। पढ़ें- 12 साल पहले बादल फटने से केदारनाथ में आई थी त्रासदी