Pushkar Singh Dhami Government UCC: उत्तराखंड की बीजेपी सरकार आने वाले कुछ दिनों में राज्य में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को लागू करने जा रही है। इसे लेकर न सिर्फ उत्तराखंड बल्कि इसके बाहर भी काफी चर्चा है। लेकिन यह जानना जरूरी होगा कि मुस्लिम संगठन यूसीसी के लागू होने पर किस तरह की तैयारी कर रहे हैं। बताना होगा कि मुस्लिम संगठन लगातार यूसीसी को लागू किए जाने का विरोध करते रहे हैं।

मुस्लिम सेवा संगठन, तंजीम-ए-रहनुमा-ए-मिल्लत तथा जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने साफ किया है कि समान नागरिक संहिता के लागू होते ही वे अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे।

मुस्लिम सेवा संगठन के अध्यक्ष नईम कुरैशी ने द इंडियन एक्सप्रेस को बातचीत में बताया कि यूसीसी को चुनौती दी जाएगी क्योंकि यह संविधान के आर्टिकल 246 का साफ तौर पर उल्लंघन करता है। आर्टिकल 246 सातवीं अनुसूची के तहत विषयों को राज्य, केंद्र और समवर्ती सूची में वर्गीकृत करने का प्रावधान करता है।

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आदिवासियों को बाहर रखने पर सवाल

नईम कुरैशी ने कहा, “आदिवासियों को यूसीसी से कैसे बाहर रखा जा सकता है। इससे पता चलता है कि सरकार की इच्छा पर्सनल लॉ को व्यवस्थित करने की नहीं है बल्कि अल्पसंख्यकों के हकों का उल्लंघन करने में उसकी ज्यादा रुचि है।” कुरैशी ने कहा कि हमने इस मामले में एक याचिका तैयार की है। इसमें हमने मांग की है कि यूसीसी को तब तक लागू न किया जाए जब तक केंद्र सरकार पूरे देश के लिए एक समान संहिता नहीं लेकर आती। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में जैसे ही समान नागरिक संहिता लागू होगी, हम अगले ही दिन उत्तराखंड हाई कोर्ट पहुंच जाएंगे।

कुरैशी ने आरोप लगाया कि उत्तराखंड सरकार के द्वारा लाई जा रही समान नागरिक संहिता के जरिए एक धर्म की संस्कृति को दूसरे धर्म पर थोपने की कोशिश की जा रही है।

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यूसीसी के लागू होने के बाद मुस्लिम समुदाय को प्रभावित करने वाले जो बड़े बदलाव होंगे, उनमें हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 और विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के हिसाब से पुरुषों और महिलाओं की लिए शादी की न्यूनतम उम्र क्रमश: 21 और 18 साल कर दी जाएगी।

शादी की उम्र को लेकर विवाद

मुस्लिम समुदाय में शादी की न्यूनतम उम्र बहस का मुद्दा रही है क्योंकि मुस्लिम पर्सनल लॉ के मुताबिक इस समुदाय की लड़कियों के लिए शादी की न्यूनतम उम्र को 13 वर्ष माना गया है लेकिन POCSO Act और Prevention of Child Marriage Act के लागू होने के बाद नाबालिगों के बीच विवाह और यौन संबंध को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया है।

यूसीसी के तहत द्विविवाह और बहुविवाह (bigamy and polygamy) की प्रथाओं को भी गैरकानूनी घोषित किया गया है। साथ ही, मुस्लिम समुदाय में मानी जाने वाली प्रथाओं जैसे- इद्दत (महिलाओं की फिर से शादी के लिए 4 महीने और 10 दिनों का वेटिंग पीरियड) और निकाह-हलाला को भी अवैध घोषित किया गया है। इन प्रथाओं को मानने के लिए मजबूर करने या उकसाने पर तीन साल तक की सजा या 1 लाख रुपये का जुर्माना हो सकता है।

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समिति के सभी सदस्य हिंदू हैं: लताफत हुसैन

तंजीम-ए-रहनुमा-ए-मिल्लत के अध्यक्ष लताफत हुसैन ने कहा कि यूसीसी पर मुस्लिम समुदाय द्वारा उठाई गई 1.5 लाख से अधिक सिफारिशों और आपत्तियों को नजरअंदाज कर दिया गया। उन्होंने कहा कि सरकार की ओर से इस संबंध में बनाई गई समिति के सभी सदस्य हिंदू हैं।

लताफत हुसैन ने कहा, “हमने इस प्रस्तावित संहिता का विरोध किया लेकिन हमारी बात को नहीं सुना गया। ऐसे में अब हमारे पास केवल अदालत जाने का ही रास्ता बचा है।” उन्होंने संकेत दिया कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) इस मामले में हाई कोर्ट जा सकते हैं।

लताफत हुसैन अलग उत्तराखंड राज्य के लिए संघर्ष कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि सरकार को भूमि कानून और डोमिसाइल के नियमों को सख्त बनाने और रोजगार के मौके पैदा करने पर ध्यान देना चाहिए। क्योंकि स्थानीय लोग मांग कर रहे हैं कि 1950 के दशक से यहां बसे लोगों को डोमिसाइल दिया जाए।

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