राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने उत्तराखंड मदरसा शिक्षा बोर्ड की एक रिपोर्ट पर आपत्ति जताई है, जिसमें कहा गया है कि राज्य के 30 मदरसों में पढ़ने वाले 7,399 छात्रों में से लगभग 10 फीसदी मुस्लिम नहीं हैं। अब NCPCR चाहता है कि माइनॉरिटी वेलफेयर डिपार्टमेंट यह स्पष्ट करे कि इन बच्चों को राइट टू एजुकेशन एक्ट के तहत “स्कूलों” में रजिस्टर क्यों नहीं किया गया है।

कांग्रेस ने बीजेपी सरकार पर बोला हमला

विपक्षी कांग्रेस पार्टी ने इस मामले में बीजेपी पर हमला बोला है। कांग्रेस की तरफ से कहा गया है कि प्रदेश में 749 गैर मुस्लिम बच्चे मदरसों में पढ़ रहे हैं यह उत्तराखंड की सच्चाई दर्शाता है, खासकर हिंदुत्व मॉडल की। उत्तराखंड कांग्रेस की चीफ गरीमा मेहरा दासाउनी ने कहा कि गैर मुस्लिम परिवारों द्वारा अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों के बजाय मदरसों में भेजना सरकार और शिक्षा तंत्र पर बड़ी सवाल उठाता है।

BJP ने क्या कहा?

राज्य में बीजेपी के मीडिया इंचार्ज मनवीर सिंह चौहान ने कहा कि पुष्कर सिंह को इस मामले की जानकारी है। इन बच्चों को सरकारी स्कूलों में प्रवेश दिलाने के प्रयास किए जाएंगे। उन्होंने कहा कि इन बच्चों ने किन हालातों में मदरसों में एडमिशन लिया इस मामले की जांच की जाएगी। सरकार इस बात को लेकर सचेत है और फर्जी तरीके से चल रहे कई मदरसों को बंद कर दिया गया है। कई अन्य लोगों की जांच चल रही है।

कैसे सामने आई गैर मुस्लिम बच्चों के मदरसे में पढ़ने की बात?

मदरसों में गैर मुस्लिम बच्चों का डाटा NCPCR द्वारा वक्फ बोर्ड को दिए गए निर्देशों के बाद जुटाया गया था। इससे पहले उत्तराखंड वक्फ बोर्ड ने NCERT सिलेबस लागू करने के ऐलान के साथ मदरसों के मॉडर्नाइजेशन का ऐलान किया था। इस सिलेबस में साइंटिफिक लर्निंगके साथ बेहद इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलप करना था। उत्तराखंड वक्फ बोर्ड के तहत राज्य में मदरसों का संचालन किया जाता है।

आपको बता दें कि पछले साल मदरसों में यूनिफॉर्म ड्रेस कोड लागू किया था। इतना ही नहीं अन्य स्कूलों की तरह मदरसों में कक्षा का टाइम भी सुबह 8 बजे से दोपहर 2 बजे तक फिक्स कर दिया था। वक्फ बोर्ड के चेयरमैन शादाब शम्स (BJP सदस्य) कहते हैं कि वो संस्था के साथ रजिस्टर्ड मदरों में संस्कृत लागू करेंगे और राज्य के सभी मदरसों का सर्वे करने के लिए एक कमेटी बनाएंगे।

शादाब श्म्स कहते हैं कि संस्कृत सिखाने के लिए हिंदु पुजारियों को आमंत्रित किया जाएगा। वे गरीब मदरसों को भी गोद ले सकते हैं। इससे दोनों धर्मों के बीच दूरियां कम होंगी। उन्होंने कहा कि चूंकि उत्तराखंड देवभूमि है, इसलिए हमें संस्कृति का पालन करना चाहिए।

इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में शम्स ने कहा कि यह देखने की जरूरत है कि इन मदरसों में क्या शिक्षा दी जा रही है। मदरसा बोर्ड का एक निश्चित सिलेबस है और हर महत्वपूर्ण विषय वहां पढ़ाया जाता है। अगर इन मदरसों में ऐसा है और यहां सिर्फ धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा रही है तो कोई समस्या नहीं होनी चाहिए। इसलिए किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले हमें यह जांचना होगा कि ये मदरसे क्या पढ़ा रहे हैं। उन्होंने कहा कि राज्य में 415 रजिस्टर्ड मदरसे हैं, जिनमें से 117 वक्फ बोर्ड के अधीन हैं और बाकी उत्तराखंड मदरसा शिक्षा बोर्ड के अधीन हैं।