उत्तराखंड में 2013 में आई विनाशकारी बाढ़ में फंसे लाखों लोगों को जहां पीने के लिए पानी तक नहीं मिल रहा था, वहीं बाढ़ राहत कार्यों की निगरानी में लगे राज्य सरकार के अधिकारी रोजाना हजारों रुपए का नाश्ता कर रहे थे और खाना खा रहे थे।

बाढ़ पीड़ित दाने-दाने को मोहताज थे और ये अधिकारी होटलों में बैठकर मटन चाप, चिकन, दूध, पनीर और गुलाब जामुन खाते हुए राहत और बचाव कार्यों की निगरानी में व्यस्त थे।


आधा लीटर दूध के लिए 194 रुपए और दोपहिया वाहनों के लिए डीजल की आपूर्ति, होटल प्रवास के लिए प्रतिदिन सात हजार रुपए का क्लेम करने, एक ही व्यक्ति को दो बार राहत का भुगतान, लगातार तीन दिन तक एक ही दुकान से 1800 रेनकोट की खरीद और ईंधन खरीद के लिए एक हेलिकाप्टर कंपनी को 98 लाख रुपए का भुगतान करने जैसी बड़ी बड़ी वित्तीय गड़बड़ियों का खुलासा एक आरटीआइ आवेदन के जरिए हुआ है।

उत्तराखंड के भीषण प्राकृतिक आपदा की चपेट में रहने के दौरान हुई इन कथित अनियमितताओं का संज्ञान लेते हुए राज्य के सूचना आयुक्त अनिल शर्मा ने सीबीआइ जांच की सिफारिश की है।