Uttarakhand UCC Regulation: उत्तराखंड हाई कोर्ट ने बुधवार को एक अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि निजता का हनन करने के नाम पर किसी के आत्म सम्मान की बलि नहीं दी जा सकती खासतौर से तब, जब वह लिव-इन रिलेशनशिप में जन्मा बच्चा हो। हाई कोर्ट ने पूछा कि लिव-इन रिलेशनशिप को रेगुलेट करने में आखिर गलत क्या है?
चीफ जस्टिस जी. नरेंद्र की बेंच उत्तराखंड समान नागरिक संहिता अधिनियम, 2024 के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में विशेष रूप से लिव-इन रिलेशनशिप से जुड़े प्रावधानों को अदालत के सामने रखा गया था। बताना होगा कि उत्तराखंड में बीते महीने ही समान नागरिक संहिता कानून को लागू किया गया है।
यह याचिका अलमासुद्दीन सिद्दीकी की ओर से अधिवक्ता कार्तिकेय हरि गुप्ता ने दायर की है। याचिका में कहा गया है कि समान नागरिक संहिता न सिर्फ याचिकाकर्ताओं के विवाह करने के धार्मिक अधिकार पर रोक लगाती है बल्कि ऐसे विवाह को अवैध घोषित कर उसे अपराध की श्रेणी में भी रखती है।
जवाब दाखिल करने के लिए मांगा वक्त
इस मामले में उत्तराखंड और केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने याचिका पर जवाब दाखिल करने के लिए अदालत से छह हफ्ते का वक्त देने का अनुरोध किया। इससे पहले चीफ जस्टिस ने समान नागरिक संहिता कानून की धारा 387(1) पर स्पष्टीकरण मांगा। इस धारा के मुताबिक, लिव-इन रिलेशनशिप का रजिस्ट्रेशन न कराना अपराध है और इसके लिए तीन महीने तक की जेल या 10,000 रुपये तक का जुर्माना या दोनों का प्रावधान करता है। सॉलिसिटर जनरल मेहता ने कहा कि वह इस मामले में जवाब देंगे।
इसके बाद टिप्पणी करते हुए चीफ जस्टिस ने पूछा, ‘लिव-इन रिलेशनशिप को रेगुलेट करने में क्या गलत है? इसके भी अपने नुकसान हैं। अगर रिश्ता टूट जाता है तो क्या होगा। अगर इस रिश्ते से कोई बच्चा होता है तो फिर क्या होगा? शादी के मामले में पितृत्व को लेकर एक स्वाभाविक धारणा होती है लेकिन लिव-इन रिलेशनशिप में ऐसी कोई बात नहीं है। आपकी निजता के हनन की आड़ में क्या किसी दूसरे व्यक्ति के आत्मसम्मान की बलि दी जा सकती है, वह भी तब जब वह आपका बच्चा हो और शादी या पितृत्व का कोई सबूत न हो।’
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इसके जवाब में सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि लिव-इन में रहने पर रजिस्ट्रेशन करना महिला सशक्तिकरण का प्रावधान है। चीफ जस्टिस ने कहा कि लिव-इन को पहले से ही Protection of Women from Domestic Violence Act के तहत मान्यता प्राप्त है।
चीफ जस्टिस ने कहा कि इस मामले में समस्या सिर्फ महिलाओं की नहीं है बल्कि पितृत्व साबित करने की भी है और अगर लिव-इन रिलेशनशिप का रजिस्ट्रेशन किया जाए तो यह निश्चित रूप से मददगार होगा।
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