उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में एक मदरसों के छात्रों और अन्य लोगों ने पुलिस पर गंभीर आरोप लगाए हैं। इनका कहना है कि 20 दिसंबर को जिस दिन नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन हो रहे थे तब पुलिस मदरसा कैंपस में घुस आई। वहां मौजूद लोगों को कथित तौर पर लाठियों से पीटने के अलावा उन्हें ‘जय श्रीराम’ का नारा लगाने के लिए मजूबर किया गया। छात्रों को आतंकवादी तक कहा गया।

मदरसे का संचालन करने वाले मौलाना असद रजा हुसैनी (68) ने कहा कि वो उन लोगों में शामिल हैं जिन्हें पुलिस ने पीटा। उन्होंने कहा, ‘उन्होंने कुछ नहीं कहा। उन्होंने मुझे इतना मारा कि मैं गिर नीचे गिर गया। इसके बाद कोई मुझपर गिर गया। मुझे नहीं लगा कि मैं बच पाऊंगा मगर खुदा ने बचा लिया। मैंने कभी ऐसा नहीं देखा। यहां तक साल 2013 के दंगों के वक्त भी ऐसा नहीं हुआ।’ हुसैनी के मुताबिक उनका एक हाथ टूट गया और दोनों पैरों में पट्टियां बंधी हैं।

हालांकि सीनियर पुलिस अधिकारी अभिषेक यादव ने इन आरोपों से इनकार किया है। उन्होंने उन आरोपों से भी इनकार किया कि जिसमें छात्रों और अन्य लोगों द्वारा जय श्रीराम का नारा लगवाने के आरोप लगे। यादव कहते हैं कि ऐसी कोई बात नहीं है। मारपीट के आरोप पर अभिषेक यादव ने कहा, ‘हमें लाठीचार्ज करना पड़ा क्योंकि प्रदर्शनकारी मदरसे में दाखिल हो गए थे, मगर उसके बाद कोई कार्रवाई नहीं हुई। बस अफवाहें फैलाई जा रही हैं।

यादव के मुताबिक 20 दिसंबर को कुछ प्रदर्शनकारी कथित तौर पर मदरसा कैंपस में घुस गए। इस दौरान हमने 75 लोगों को हिरासत में लिया था। हालांकि उनमें 28 छात्रों को उसी दिन छोड़ दिया गया। सोमवार को दस अन्य लोगों को छोड़ा गया। इसके अलावा जो लोग प्रदर्शन में शामिल थे उन्होंने जमानत दे दी गई क्योंकि उनके खिलाफ तोड़फोड़ का कोई चार्ज नहीं साबित नहीं हो पाया था।

एसएसपी यादव ने आगे कहा कि मौलाना के बेटे मोहम्मद हुसैनी ने एक प्रेस रिलीज जारी की है, जिसमें उन्होंने पुलिस हिंसा के आरोपों का खंडन किया। हालांकि हुसैनी ने कहा, मैंने केवल मीडिया द्वारा रेक्टल ब्लीडिंग और अन्य दावों की झूठी रिपोर्ट का खंडन किया है। मगर पुलिस ने लोगों के साथ मारपीट की थी।’ पहले रिपोर्ट थी कि मदरसे में पढ़ रहे छात्रों में ज्यादा नाबालिग थे, इनमें कुछ को बुरी तरह पीटा गया और रेक्टल ब्लीडिंग हुई।