उत्तर प्रदेश में आवारा पशुओं की समस्या गंभीर रूप धारण करती जा रही हैं। राजनीतिक रूप से इसकी सबसे ज्यादा फजीहत बीजेपी को झेलनी पड़ सकती है। एक तरफ जहां बीजेपी कार्यकर्ता और गोरक्षक बेसहारा गायों की सुरक्षा का नारा लगा रहे हैं। वहीं, दूसरी तरफ बड़ी संख्या में किसान बेसहारा पशुओं द्वारा फसल बर्बादी से गुस्से में हैं। तमाम मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक किसान आवारा पशुओं से अपनी फसल बचाने के लिए लगातार खेतों की रखवाली कर रहे हैं। वहीं, कई जगहों पर पशुओं को सरकारी उपक्रमों के अहाते में बंद किया जा रहा है। इससे भूख और प्यास से बड़ी संख्या में गाय और बैलों की मौतें हो रही हैं। पिछले साल दिसंबर के आखिरी सप्ताह में ही 84 बेसहारा गायों की मौत हो गई जबकि काफी बड़े पैमाने पर किसानों की फसलें भी खराब हुईं।

बेसहारा पशुओं को ठौर देने के लिए योगी सरकार गोशालाओं का इंतजाम कर रही है। लेकिन, जिन गोशालाओं को फंड दिया जा रहा है वहीं पर उनके मरने की खबरें सुर्खियां बनती हैं। पिछले दिनों अलीगढ़ में जिस गोशाला को प्रशासन ने 2.5 लाख रुपये दिए थे, उसी में 78 गायों की मौत हो गई। इस बीच उत्तर प्रदेश के तमाम इलाकों में किसान बेसहारा गायों और बैलों से काफी फजीहत झेल रहे है। हालांकि, स्थिति को समझते हुए योगी सरकार ने बेसहारा गायों की देखरेख के लिए तत्काल उपाय निकलने के लिए प्रशासन को निर्देश दिया है। लेकिन, जमीन पर कोई भी गतिविधि कारगर साबित नहीं हो रही है।

हालात ऐसे हैं कि किसान और गाय आमने-सामने है और प्रदेश सरकार को इस दिक्कत को दूर करने में काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है। इकोनॉमिक्स टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक योगी सरकार की नीतियों को किसान खुद के लिए घातक बता रहे हैं। किसानों का कहना है कि उनके पास खेत-खलिहान और पशु ही धन हैं। लेकिन, खेत में फसलों को आवारा पशु तबाह कर रहे हैं और पशुपालन का धंधा भी एक तरह से चौपट है। गोरक्षकों का आतंक इस कदर है कि पशु व्यापार का काम मंदा है। पशुपालक गायों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने से भी डरते हैं। इस वजह से बाजार में गायों की कीमतों में काफी गिरावट आ गई है। पहले किसान गायों के बछड़ों को 4,000 से 5,000 रुपये में बेच देते थे। लेकिन, अब वे यह नहीं कर सकते। गायों की कीमतों में भी 10,000 से 15,000 रुपये की गिरावट आ गई है।

ऐसे में बिना दूध देने वाली गाय और उनके बछड़े एक वक्त के बाद अनुपयोगी हो जा रहे हैं। जिसे खूंटे से बांधे रखना किसान या पशुपालकों के लिए भारी पड़ रहा है। लिहाजा, काफी अनुपात में बेसहारा पशु गावों के खेतों और सड़कों पर भटक रहे हैं। बीते कुछ सालों में बढ़ते आवारा पशुओं की वजह से कृषि क्षेत्र काफी प्रभावित हुआ है। साथ ही गोरक्षा से उपजे विवादों में भी इजाफा देखने को मिला है। गोकशी, गोरक्षा और गो-तस्करी से संबंधित विवादों का ट्रेंड पिछले कई सालों में लगातार बढ़ा है। इकोनॉमिक्स टाइम्स के मुताबिक अकेले मेरठ में ही गायों से संबंधित मामले जहां 2016 में 69 थे वहीं 2017 में ये बढ़कर 71 हो गए। जबकि, 2018 में गाय से जुड़े दर्ज शिकायतें 117 हो गईं।

सरकारी स्तर पर हर जगह गोशाला बनाने की बात कही जा रही है। लेकिन, यह संसाधन नाकाफी सिद्ध हो रहे हैं। लिहाजा, फसल बर्बादी से जहां किसान गुस्से में हैं वहीं बीजेपी के सामने गाय की सुरक्षा का मुद्दा भी प्राथमिकता में है। ऐसे में गाय और किसानों के संबंध में परिस्थितियां योगी सरकार के लिए विकट सिद्ध होती जा रही हैं।