उत्तर प्रदेश की एक युवा महिला न्यायिक अधिकारी ने भारत के मुख्य न्यायाधीश को एक खुला पत्र लिखकर अपना जीवन समाप्त करने की अनुमति मांगी है। उन्होंने आरोप लगाया कि पिछली पोस्टिंग में उनके सीनियर ने उनका यौन उत्पीड़न किया था। घटना छह महीने पहले की है। पत्र में उन्होंने कहा कि न्याय तो दूर की बात है, उन्हें निष्पक्ष जांच होने की भी कोई उम्मीद नहीं है।

पत्र में उन्होंने लिखा, “मेरे साथ सार्वजनिक रूप से डायस पर दुर्व्यवहार किया गया”

दो पन्नों के पत्र में उन्होंने लिखा, ”मैं बहुत उत्साह और विश्वास के साथ न्यायिक सेवा में शामिल हुई थी। मुझे लगा था कि मैं आम लोगों को न्याय दिलाऊंगी। मुझे क्या पता था कि मैं जिस भी दरवाजे पर जाऊंगी, जल्द ही मुझे न्याय के लिए भिखारी बना दिया जाएगा। मेरी सेवा के थोड़े से समय में मुझे खुले दरबार में मंच पर दुर्व्यवहार सहने का दुर्लभ सम्मान मिला है।”

उन्होंने कहा कि उनके साथ बहुत बुरा और हद दर्जे का बर्ताव किया गया

गुरुवार को सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे अपने पत्र में उन्होंने लिखा, “मेरा यौन उत्पीड़न हद दर्जे तक किया गया है। मेरे साथ बिल्कुल कूड़े जैसा व्यवहार किया गया है। मैं एक अवांछित कीट की तरह महसूस करती हूं। और मुझे दूसरों को न्याय दिलाने की आशा थी।”

महिला जज ने कहा, ” मुझे रात में सीनियर से मिलने के लिए कहा गया”

उन्होंने कहा, “मुझे उम्मीद नहीं थी कि मेरी शिकायतों और बयान को मूलभूत सत्य के रूप में लिया जाएगा। मैं बस निष्पक्ष जांच की कामना करती थी।” उन्होंने आरोप लगाया कि उन्हें रात में अपने सीनियर से मिलने के लिए कहा गया था। उन्होंने दावा किया कि उन्होंने आत्महत्या करके जान देने की कोशिश की थी, लेकिन “प्रयास सफल नहीं हुआ।”

उन्होंने सीजेआई को लिखा “मुझे अब जीने की कोई इच्छा नहीं है। पिछले डेढ़ साल में मुझे चलती-फिरती लाश बना दिया गया है। इस निष्प्राण और निर्जीव शरीर को अब इधर-उधर ढोने का कोई प्रयोजन नहीं है। मेरी जिंदगी का कोई मकसद नहीं बचा है। कृपया मुझे अपना जीवन सम्मानजनक तरीके से खत्म करने की अनुमति दें। मेरी जिंदगी खारिज कर दी जाए।”

उन्होंने “भारत में कामकाजी महिलाओं” से “सिस्टम के खिलाफ लड़ने” का प्रयास न करने को कहा। “अगर कोई महिला सोचती है कि आप सिस्टम के खिलाफ लड़ेंगी। मैं आपको बता दूं, मैं नहीं कर सकी। और मैं जज हूं। मैं अपने लिए निष्पक्ष जांच कराने की भी हिम्मत नहीं जुटा सकी। न्याय तो दूर की बात है। मैं सभी महिलाओं को सलाह देती हूं कि वे खिलौना या निर्जीव वस्तु बनना सीखें।” बार-बार प्रयास करने के बावजूद न तो महिला न्यायाधीश और न ही उनके वरिष्ठ से संपर्क किया जा सका।