देश की राजनीति में यूपी का दबदबा हमेशा से रहा है और यही वजह रही है कि जब भी कोई बड़ा सियासी घटनाक्रम होता है तो उसमें यूपी का नाम आ ही जाता है। ताजा घटनाक्रम कई राज्यों के राज्यपालों के बदले जाने का है। इसमें कई राज्यपालों का संबंध उत्तर प्रदेश से है। उत्तर प्रदेश से निकलकर शीर्ष पदों पर पहुंचने वाले इन नेताओं में कई ऐसे हैं, जो लंबे समय से अपने कार्यों और भूमिकाओं की वजह से चर्चा में रहे हैं। सियासी जानकारों का कहना है कि इन नियुक्तियों में क्षेत्रीय और जातीय समीकरण को प्रमुखता से ध्यान में रखा गया है।
राज्यपालों में सात का संबंध उत्तर प्रदेश से है
इस समय सात राज्यों के राज्यपाल यूपी के रहने वाले हैं। इनमें राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र गाजीपुर के हैं, वहीं के जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा भी हैं। हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ला गोरखपुर से हैं, मेघालय के राज्यपाल फागू चौहान आजमगढ़ के हैं सिक्किम के राज्यपाल लक्ष्मण प्रसाद आचार्य वाराणसी के हैं। लद्दाख के उपराज्यपाल बीडी मिश्रा भदोही के हैं। सिक्किम के राज्यपाल लक्ष्मण प्रसाद आचार्य वाराणसी के हैं। इनके अलावा यूपी के ही बुलंदशहर के रहने वाले आरिफ मोहम्मद खान इस समय केरल के राज्यपाल हैं।
इन राज्यपालों में से छह का संबंध पूर्वांचल से है। यूपी की राजनीति में पूर्वांचल का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। पूर्वांचल में भारतीय जनता पार्टी अपनी जातीय समीकरण को मजबूत करने में लगी है। अभी हाल ही में जिन राज्यपालों को नियुक्त किया गया या एक राज्य से दूसरे राज्य में भेजा गया, उनमें ब्राह्मण, ओबीसी और अनुसूचित जनजाति समाज को खास अहमियत दी गई है।
अगले साल 2024 में लोकसभा चुनाव होना है। यूपी देश का सबसे बड़ा राज्य है। केंद्र की सत्ता में पहुंचने के लिए यहां पर सियासी समीकरण को मजबूती से अपने पक्ष में करने के लिए सभी दल पूरा जोर लगाए रहते हैं। ऐसे में राज्यों में राज्यपालों की नियुक्ति में यूपी को प्रमुखता से जगह मिलना साफ संकेत है कि केंद्र सरकार यहां की जातीय समीकरण को साधने में लगी है।
राज्यपाल राज्य की राजनीति में सीधे भले ही दखल नहीं देते हैं, लेकिन बिना उनकी मंजूरी के फैसले लिए भी नहीं जा सकते हैं। ऐसे में केंद्र सरकार के लिए राज्यपाल हमेशा से मजबूत कड़ी बनते रहे हैं।
