राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के वरिष्ठ नेता कृष्ण गोपाल ने सोमवार को एक कार्यक्रम के दौरान दावा किया किय इस्लाम के उदय के बाद भारत में छुआछूत शुरू हुआ। उन्होंने कहा कि दलित जैसा कोई शब्द नहीं था यह अग्रेंजों की बांटो और राज करो नीति का हिस्सा था। उन्होंने कहा कि गौमांस सेवन करने वाले लोगों को प्राचीन भारत में अस्पृश्य करार दिया जाता था और ”दलित” शब्द प्राचीन भारतीय साहित्य में मौजूद नहीं था।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के संयुक्त महासचिव कृष्ण गोपाल ने पुस्तकों के विमोचन कार्यक्रम के दौरान कहा कि संविधान सभा ने भी ”दलित” की जगह ”अनुसूचित जाति” शब्द का इस्तेमाल किया।उन्होंने कहा कि यह अंग्रेजों की साजिश थी कि दलित शब्द (समाज में) धीरे-धीरे प्रसारित होता गया।आरएसएस नेता ने ”भारत का राजनीतिक उत्तरायण” और ‘भारत का दलित विमर्श’ पुस्तकों का विमोचन किया। कार्यक्रम में संस्कृति और पर्यटन मंत्री प्रलाद  पटेल भी उपस्थित थे।

गोपाल ने कहा, ‘‘भारत में अस्पृश्यता का पहला उदाहरण तब आया जब लोग गाय का मांस खाते थे, वे ‘अनटचेबल’ घोषित हुए। ये स्वयं (बी आर) आंबेडकर जी ने भी लिखा है।’’ उन्होंने कहा कि धीरे-धीरे यह समाज में प्रसारित होता गया और समाज के एक बड़े हिस्से को अस्पृश्य करार दिया गया। लंबे समय तक उनका उत्पीड़न और अपमान किया गया।गोपाल ने कहा कि रामायण लिखने वाले मर्हिष वाल्मीकि दलित नहीं थे, बल्कि शूद्र थे, और कई महान ऋषि भी शूद्र थे और उनका बहुत सम्मान किया जाता था।

आरएसएस नेता के इस बयान पर  बीजेपी की सहयोगी पार्टी जेडीयू  के एक नेता ने आलोचना की है। उन्होंने कहा कि आरएसएस देश में डर के माहौल को बढ़ावा दे रही है। उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि हमेशा आरएसएस द्वारा इस्लाम की गलत छवि क्यों पेश की जाती है।
(भाषा इनपुट्स के साथ)