जातीय जनगणना को लेकर भाजपा के कई अपने ही अब सरकार पर निशाना साधने लगे हैं। एनडीए में शामिल अपना दल की चीफ अनुप्रिया पटेल ने कहा है कि पिछड़ी जातियों की संख्या और आर्थिक स्थिति जानकर उनके विकास का काम किया जा सकता है। उन्होंने अलग से एक ओबीसी मंत्रालय की भी मांग की है। साथ ही पटेल का कहना है कि आरक्षण के लिए ओबीसी की आय सीमा बढ़ाकर 15 लाख रुपये कर देनी चाहिए। बता दें कि दो दिन पहले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी एक प्रतिनिधिमंडल के साथ इसी मुद्दे पर प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात की थी। उनके साथ आरजेडी नेता तेजस्वी यादव भी थे।

केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने इकॉनिक टाइम्स से कहा कि एनडीए और संसद में किए गए कई वादों के बाद वह सरकार पर जातीय जनगणना के लिए दबाव बना रही हैं। उन्होंने यह मुद्दा प्रधानमंत्री के सामने भी उठाया था। केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘इस मामले में फैसला करने में देर करने की कोई वजह नहीं है।’

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पटेल ने कहा, ‘ओबीसी जातीय जनगणना की मांग लंबे समय से चली आ रही है। 1990 में जब मंडल कमिशन की रिपोर्ट को लागू किया गया था, तब ओबीसी की गणना केवल अनुमान के आधार पर की गई थी।’ उन्होंने राजनाथ सिंह की बात याद दिलाते हुए कहा कि 2018 में उन्होंने वादा किया था कि 2021 की जनगणना में ओबीसी की गिनती की जाएगी। मुझे आश्चर्य है कि सरकार अब अपना संकल्प क्यों नहीं पूरा कर रही है।

उन्होंने कहा, ‘केवल जातीय जनगणना से पता चल सकता है कि किस जाति को कितना आरक्षण मिलना चाहिए। अगर जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण दिया जाना है तो गिनती करना जरूरी है। अभी जो भी नियम लागू किए गए हैं वे 1931 की जातीय जनगणना के हिसाब से हैं। अब प्रधानमंत्री मोदी के पाले में ही आखिरी फैसला करना है। वह राजनीतिक दलों का मूड जानते हैं। ज्यादातर पार्टियां इसकी मांग कर रही हैं। इस प्रस्ताव पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए।’

बता दें कि भाजपा के अंदर भी कई नेताओं ने जाति आधारित जनगणना की मांग की है। इसमें लोकसभा सांसद संघमित्रा मौर्या और राज्य सभा के सदस्य सुशील कुमार मोदी भी शामिल हैं। वहीं अनुप्रिया पटले ने कहा कि ओबीसी मामलों के लिए अलग से मंत्रालय भी होना चाहिए। वर्तमान में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के अंदर ही छोटे से प्रभाग में ओबीसी की समस्या पर काम होता है। वहीं उत्तर प्रदेश समेत कुछ राज्यों में पहले से ओबीसी मंत्रालय है।