देश का केंद्रीय बजट सरकार की आर्थिक नीतियों को सामने रखता है। इसमें सरकार यह साफ करती है कि उसकी आय और व्यय क्या है तथा वह जनता के विकास और कल्याणकारी कार्यों में कितना पैसा किस मद में खर्च करने जा रही है। सरकार के आर्थिक मोर्चे पर प्राथमिकताएं क्या हैं और वह पैसा कहां से लाएगी और कहां से बचाएगी। इसको बताने के लिए केंद्र सरकार के वित्तमंत्री साल की शुरुआत में बजट पेश करते हैं। उनके भाषण की हर लाइन काफी अहम होती है। कई बार वित्तमंत्री का भाषण काफी लंबा हो जाता है।

निर्मला सीतारमण का यह लगातार सातवां बजट है

इस बार का बजट 23 जुलाई को वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण पेश कर रही हैं। यह उनका लगातार सातवां बजट है। देश में किसी भी सरकार की ओर से सबसे लंबा बजट भाषण इन्हीं का रहा है। उन्होंने साल 2020 में सबसे लंबी अवधि का बजट भाषण पेश किया था। यह करीब 2 घंटे 40 मिनट का था। दूसरी तरफ सबसे छोटा बजट भाषण 1977 में पेश किया गया था। तब हीरूभाई मुलजीभाई पटेल ने बहुत संक्षिप्त में बजट भाषण दिया था। उनका भाषण केवल 800 शब्दों का था, जो कुछ मिनट में ही खत्म हो गया था। वह मोरार जी देसाई सरकार में वित्तमंत्री थे। उनका बजट पूर्ण बजट नहीं था। सबसे छोटा पूर्ण बजट वाईबी चव्हाण – यशवन्तराव बलवन्तराव चव्हाण (Yashwantrao Balwantrao Chavan) का था। वह इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार में वित्तमंत्री थे।

इस साल केंद्रीय बजट तीन प्राथमिकताओं को संतुलित करने की कोशिश करेगा। एक सामान्य से ज़्यादा तेज राजकोषीय सुनिश्चित करना। दूसरा आम चुनावों से पहले कल्याणकारी व्यय पर ध्यान केंद्रित करना और तीसरा भौतिक बुनियादी ढांचे को बेहतर बनाने के लिए पूंजीगत व्यय पर जोर बनाए रखना।

अंतरिम बजट में बड़ी घोषणाओं की कमी रहने की उम्मीद है। लेकिन अगर 2018-19 के अंतरिम बजट को मार्गदर्शक माना जाए, तो कुछ प्रमुख कल्याणकारी व्यय की उम्मीद की जानी चाहिए। हमें ग्रामीण भारत, युवा और महिला कल्याण और एमएसएमई पर कुछ लक्षित व्यय की उम्मीद है।

दूसरी ओर पूंजीगत व्यय वृद्धि, हालांकि पिछले तीन-चार वर्षों की तुलना में बहुत कम है, फिर भी अगले साल (2024-25) पर्याप्त रूप से उच्च रहेगी। इन सभी प्राथमिकताओं को राजकोषीय समेकन के प्रयास में शामिल किया जाना चाहिए जो संभवतः राजकोषीय घाटे को जीडीपी अनुपात में 5.4 प्रतिशत (या उससे कम) पर ला सकता है।