नियुक्तियों एवं पदोन्नति में आरक्षण के मुद्दे पर शीर्ष न्यायालय के एक फैसले को लेकर विपक्ष के आरोपों के बाद सरकार पर अपनों ने भी हमला किया। सरकार ने संसद में सोमवार को स्पष्ट किया कि सरकार का इस फैसले से कोई लेना-देना नहीं है और दोहराया कि वह अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षण को प्रतिबद्ध है और इस फैसले को लेकर उच्च स्तर पर विचार के बाद समुचित कदम उठायेगी।
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत ने लोकसभा एवं राज्यसभा में इस मुद्दे पर अपने बयान में कहा, “हमारी सरकार अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं पिछड़े वर्ग के कल्याण के लिये सर्मिपत और प्रतिबद्ध है। इस विषय पर उच्च स्तरीय विचार के बाद भारत सरकार समुचित कदम उठायेगी।” इस मुद्दे पर लोकसभा में हंगामा हुआ और राज्यसभा में गहलोत के बयान के बाद विपक्ष ने वाकआउट कर दिया।
गहलोत ने लोकसभा में कहा, “इसको ध्यान में रखते हुए सरकार इस पर उच्च स्तरीय विचार कर रही है। केंद्र को मामले के लिए कभी भी पार्टी नहीं बनाया गया था, न ही हमें कोई घोषणा पेश करने के लिए कहा गया था। यह मामला 2012 में उत्तराखंड सरकार द्वारा लिए गए निर्णय के कारण उत्पन्न हुआ। उस समय राज्य में कांग्रेस की सरकार थी।”
सरकार पर विरोधियों के साथ अपनों ने भी हमला किया। बीजेपी की सहयोगी लोजपा के नेता चिराग पासवान ने कहा कि बी आर अंबेडकर और महात्मा गांधी के बीच पूना समझौते के कारण आरक्षण का विचार आया। पासवान ने कहा कि आरक्षण कोई खैरात नहीं है बल्कि यह संवैधानिक अधिकार है। इस विषय पर उच्चतम न्यायालय के फैसले से वह असहमति व्यक्त करते हैं। उन्होंने कहा “इस मामले में सरकार को हस्तक्षेप करना चाहिए। आरक्षण से जुड़े सभी विषयों को संविधान की 9वीं अनुसूची में डाल दिया जाए ताकि इस विषय पर बहस समाप्त हो जाए।”
जदयू के राजीव रंजन सिंह ने कहा कि आरक्षण के मुद्दे पर न्यायालय का जो फैसला आया है, उसको लेकर पूरा सदन एकमत है। जब पूरा सदन इस विषय पर एकमत है तब इसका राजनीतिकरण ठीक नहीं है। वहीं कैबिनेट मंत्री रामविलास पासवान ने आश्वासन दिया कि कोई भी सरकार आरक्षण को समाप्त नहीं कर सकती है और आरक्षण को जारी रखने के लिए जो भी करने की आवश्यकता है, वह सरकार करेगी।