महाराष्ट्र में 16 विधायकों के निलंबन पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर उद्धव ठाकरे इस्तीफा ना देकर फ्लोर टेस्ट का सामना करते तो उनकी सरकार बच भी सकती थी और वे सीएम भी बने रहते। अब ये हो सकता था अगर उद्धव इस्तीफा ना देते, यानी कि ये बात पुरानी हो गई है और अब कुछ नहीं बदल सकता।
उद्धव का एक भाषण और गेम ओवर
उद्धव ठाकरे को लेकर बताया जा रहा है कि जिस समय उन्होंने सीएम पद से इस्तीफे का ऐलान किया था, उन्होंने ना अपने साथी दल एनसीपी या कांग्रेस से चर्चा की और ना ही अपने करीबियों को इस बारे में बताया। वे सीधे जनता के सामने गए, 15 मिनट का भाषण दिया और महाराष्ट्र में उद्धव पूर्व सीएम हो गए। इस्तीफा देते वक्त उद्धव ने कहा था कि ये लोकतंत्र की विडंपना है कि सिर का इस्तेमाल सिर्फ ये गिनती करने के लिए हो रहा है कि किसके पास बहुमत है। मैं इन सभी बातों में दिलचस्पी नहीं रखता हूं।
अब तब उद्धव ने दिलचस्पी नहीं दिखाई, लेकिन उन्होंने किसी से बात करना जरूरी नहीं समझा और सीधे इस्तीफा दे दिया। लेकिन उनका वो एक फैसला ही आज सबसे बड़ी गले की फांस बना हुआ है क्योंकि उन्होंने सिर्फ सत्ता नहीं गंवाई है बल्कि अपने पिता की शिवसेना को भी गंवा दिया है। बड़ी बात ये है कि शरद पवार को भी इस ‘गलती’ का अहसास है और उन्होंने एक मीडिया चैनल से बातचीत के दौरान इस पर बात भी की है।
क्या उद्धव भी मान रहे अपनी गलती?
शरद पवार ने कहा था कि ठाकरे के पास इस्तीफा देने का पूरा हक था। लेकिन जब आप बिना बातचीत और सलाह के कोई फैसला लेते हैं, तब परिणाम भुगतने को भी तैयार रहना चाहिए। उद्धव ने भी बिना किसी से सलाह लिए इस्तीफा दे दिया था। अब उद्धव के इस्तीफे से उनके साथी तो खुश नहीं हुए, लेकिन खुद पूर्व सीएम अभी भी सिद्धांतों की बात कर अपने फैसले को सही मान रहे हैं। उनका कहना है कि कानूनी तौर पर ये फैसला गलत हो सकता है। लेकिन सिद्धांतों पर बात करूं तो मैं उन लोगों से विश्वास मत नहीं जीतना चाहता था जिन्हें मेरे पिता और पार्टी से सबकुछ मिला था। जिन्होंने गद्दारी की उनसे ही विश्वास मत का सामना मुझे गवारा नहीं।
अभी के लिए निलंबन वाला विवाद सात जजों की बड़ी बेंच को सौंप दिया गया है और मामले पर आगे और विस्तृत सुनवाई देखने को मिलने वाली है। राज्यपाल के अधिकार, स्पीकर की जिम्मेदारी और पार्टी संविधान से लेकर कई मुद्दों पर तीखी बहस देखने को मिलने वाली है।