Thackeray Brothers Biggest Rally: महाराष्ट्र की राजनीति में 20 साल बाद एक बड़ा दिन देखने को मिला। उद्धव और राज ठाकरे एक मंच पर आए हैं। दोनों भाईयों ने मुंबई के वर्ली में एनएसआईसी डोम में संयुक्त रैली में मंच साझा किया। मराठी विजय दिवस नामक इस कार्यक्रम का आयोजन शिवसेना (यूबीटी) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) ने मिलकर किया है। बताना होगा कि उद्धव और राज ठाकरे की पार्टी जोर देकर कह रही है कि महाराष्ट्र में जबरदस्ती हिंदी को नहीं थोपा जा सकता।

अब समझने वाली बात यह है कि जो ठाकरे ब्रदर्स इतने सालों से अलग थे, महायुति सरकार के एक फैसले की वजह से ना सिर्फ दोनों साथ हैं बल्कि अब उनकी एकता ने इस सरकार को बैकफुट पर आने पर भी मजबूर कर दिया है।

आखिर कैसे साथ आए ठाकरे ब्रदर्स?

असल में यह सारा विवाद 3 लैंग्वेज फार्मूले को लेकर शुरू हुआ था। नई शिक्षा नीति के तहत महाराष्ट्र में भी कहा गया कि पहली कक्षा से बच्चों को हिंदी पढ़ाई जाएगी, इसे तीसरी भाषा के रूप में जगह दी गई। लेकिन जब इसका तगड़ा विरोध हुआ, राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे की पार्टी ने इसे हिंदी थोपने की साजिश बताया, सड़कों पर विरोध प्रदर्शन शुरू हुए, तब जाकर फडणवीस सरकार को अपने कदम पीछे खींचने पड़े।

अभी के लिए महाराष्ट्र के स्कूलों में हिंदी अनिवार्य नहीं रहने वाली है। एक कमेटी का गठन किया गया है और उस कमेटी के सुझावों के आधार पर ही अब आगे कोई फैसला लिया जाएगा। लेकिन इस एक यूटर्न को उद्धव और राज ठाकरे अपनी सबसे बड़ी जीत मान रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि विजय रैली से पहले इसी तारीख को उद्धव और राज ठाकरे सबसे बड़ा विरोध प्रदर्शन करने वाले थे। वो प्रदर्शन भी इसी थ्री लैंग्वेज फार्मूले को लेकर था। लेकिन अब क्योंकि सरकार ने अपने कदम पीछे खींच लिए, ऐसे में नेरेटिव बदलने के लिए अब इसे विजय रैली का नाम दे दिया गया।

उद्धव-राज के साथ आने के मायने

अब उद्धव और राज ठाकरे का साथ आना मायने रखता है। यहां पर समझने की जरूरत है कि दोनों ही पार्टियों की विचारधारा कुछ मामलों में एक समान है। एमएनस का तो गठन ही मराठी अस्मिता के आधार पर हुआ है। वही बात जब बाल ठाकरे की आती है तो उन्होंने भी अपने जमाने में मराठी अस्मिता का मुद्दा उठाकर सरकार तक बना रखी है। ऐसे में अब जब महायुति पहले की तुलना में काफी ज्यादा मजबूत हो चुकी है, बीजेपी भी हिंदुत्व की राजनीति को लगातार धार दे रही है, इस बीच राज और उद्धव ठाकरे कई साल पुराना एक्सपेरिमेंट फिर दोहराना चाहते हैं, मराठी अस्मिता को सबसे बड़ा मुद्दा बनाकर लोगों से भावनात्मक अपील करना चाहते हैं।

किसी नए गठबंधन की सुगबुगाहट?

वैसे जानकार तो यह भी मानते हैं कि बीएमसी चुनाव से पहले एक नया गठबंधन तैयार हो सकता है। असल में अभी तक उद्धव ठाकरे की तरफ से राज ठाकरे के साथ एलाइंस करने को लेकर कुछ भी स्पष्ट रूप से नहीं कहा गया है। लेकिन ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि मुंबई महानगरपालिका चुनाव में ये दोनों ही पार्टियों साथ आ सकती हैं। 2017 के जो बीएमसी चुनाव हुए थे तब शिवसेना एकजुट थी और उसने शानदार प्रदर्शन करते हुए 84 सीटें अपने नाम की थी। वही राज ठाकरे की पार्टी को मात्र 7 सीटों से संतोष करना पड़ गया था। लेकिन इस बार अगर ये दोनों ही पार्टियां साथ आ जाती हैं, बीजेपी के लिए और दूसरे सत्तारूढ़ दलों के लिए चुनौती बढ़ सकती है।

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