मोदी सरकार ने बड़ा फैसला लिया है। केंद्र की कैबिनेट कमेटी और सिक्योरिटी ने दो स्वदेशी न्यूक्लियर पनडुब्बियों को बनाने की इजाजत दे दी है। इनका निर्माण विशाखापट्टनम के शिप बिल्डिंग सेंटर में किया जाएगा। सूत्रों का कहना है कि इन्हें बनाने में निजी कंपनियों की भी मदद ली जा सकती है। अरिहंत क्लास से यह पनडुब्बियां अलग होंगी। एडवांस्ड टेक्नोलॉजी वेसल प्रोजेक्ट के तहत बनने वाली इन पनडुब्बियों के निर्माण के बाद हिंद महासागर क्षेत्र और दक्षिण चीन सागर में नौसेना की ताकत अधिक हो जाएगी।

नौसेना की ताकत में होगा और इजाफा

पहले चरण में दो पनडुब्बियों का निर्माण किया जा रहा है। यह सौदा लंबे समय से लटका हुआ था और भारतीय नौसेना इस पर जोर दे रही थी क्योंकि यह भारत की अंडरवॉटर रक्षा क्षमता की कमी दूर करने के लिए महत्वपूर्ण जरूरत थी। जानकारी के मुताबिक दो पनडुब्बियों का निर्माण होने के बाद 4 और पनडुब्बियों का निर्माण किया जा सकेगा। इसके अलावा अगले कुछ साल में नौसेना की ताकत में और इजाफा होन जा रहा है। कई युद्धपोत और सबमरीन नौसेना में शामिल होने वाले हैं। इसी साल दिसंबर में आईएनएस विशाखापट्टनम को शामिल किया जा सकता है।

31 प्रीडेटर ड्रोन खरीदने को भी मंजूरी

मोदी सरकार ने एक और सौदे को मंजूरी दी है। अमेरिकन जनरल एटॉमिक्स से 31 प्रीडेटर ड्रोन खरीदने को मंजूरी मिली है। इस सौदे को 31 अक्टूबर से पहले मंजूरी दी जानी थी क्योंकि अमेरिका के प्रस्ताव की वैधता इस समय तक ही है। अब इस पर अगले कुछ दिनों में ही हस्ताक्षर होने जा रहे हैं। रक्षा बलों को सौदे पर हस्ताक्षर करने के चार साल बाद ड्रोन मिलने शुरू हो जाएंगे। कुल 31 ड्रोन में से 15 नौसेना को दिए जाएंगे। आर्मी और भारतीय वायु सेना को आठ-आठ ड्रोन मिलेंगे।

क्या है प्रीडेटर की खासियत

एमक्यू-9बी ड्रोन 40 हजार फुट से भी अधिक ऊंचाई पर उड़ान भर सकते हैं। इनमें 40 घंटे तक उड़ान भरने की क्षमता है। चीनी ड्रोन के मामले में यह काफी आधुनिक और सटीक हमले के लिए जाने जाते हैं। इन्हें हेलफायर एयर-टू-ग्राउंड मिसाइलों और स्मार्ट बमों से लैस किया गया है। भारत अमेरिका के साथ जो डील कर रहा है उसमें 170 हेलफायर मिसाइलें, 310 GBU-39B प्रेसिजन-गाइडेड ग्लाइड बम, नेविगेशन सिस्टम, सेंसर सूट और मोबाइल ग्राउंड कंट्रोल सिस्टम शामिल हैं।