हाई कोर्ट के एक आदेश के बाद त्रिपुरा के मंदिरों में पशुओं की बलि की प्रथा पर रोक लग गई थी। इस फैसले के बाद मनाई गई पहली दिपावली में रविवार को विभिन्न मंदिरों में बिना बलि धार्मिक अनुष्ठान पूरे किए गए। ऐसे में हिंदुओं के सबसे पवित्र धार्मिक स्थलों में शुमार त्रिपुरा सुंदरी शक्तिपीठ के पुजारियों के अलावा श्रद्धालुओं का भी मानना है कि बिना बलि धार्मिक अनुष्ठान अधूरा माना जाएगा।

इंडियन एक्सप्रेस डॉट कॉम से बातचीत में त्रिपुरा सुंदरी मंदिर के मुख्य पुजारी चंदन चक्रवर्ती ने कहा कि पूजा राजा के नाम पर की जाती है। उन्होंने कहा, ‘पशु बलि पूजा की प्रक्रिया का हिस्सा है। भक्तों ने देवी को जो बलि समर्पित करने का प्रण लिया था, कोर्ट के आदेश की वजह से वो हो नहीं सका। वे निराश होकर लौट रहे हैं।’ चक्रवर्ती ने दावा किया कि वे अधूरी पूजा करा रहे हैं।

बता दें कि दिवाली के दो दिन पहले मवेशियों को हटा लिया गया। इससे पुजारी नाराज हैं और वे इसे धार्मिक मामलों में दखल की तौर पर देख रहे हैं। त्रिपुरा सुंदरी मंदिर के पुजारियों का मानना है कि बिना बलि दिवाली की पूजा ‘अधूरी’ है। बता दें कि त्रिपुरा सुंदरी मंदिर को हिंदुओं के 51 शक्तिपीठों में गिना जाता है। हर लाख दिवाली पर करीब 2 लाख श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। यह मंदिर दक्षिणी उदयपुर में स्थित है, जो राजधानी अगरतला से 55 किमी दूर स्थित है।

इस बार मंदिर में आयोजित होने वाला दिवाली उत्सव कुछ बदला सा हुआ था। बीते 10 साल से चले हा रहे त्रिपुरा सुंदरी डांस और म्यूजिक फेस्टिवल का आयोजन इस बार नहीं हुआ। अबकी ‘मंगल आरती’ का आयोजन हुआ, जिसमें 1000 श्रद्धालुओं ने हिस्सा लिया। शरीक होने वालों में सूबे के मुख्यमंत्री बिप्लब देव और उनकी उनकी पत्नी नीति देब भी शामिल थीं। इसके अलावा, 51 शक्तिपीठ के पुजारी भी आए थे।