त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में शानदार जीत हासिल करने के बाद भी बीजेपी को अपनी पसंद के वयक्ति को मुख्यमंत्री बनाने में परेशानी आ सकती है। यह दिक्कत किसी विरोधी पार्टी की तरफ से नहीं, बल्कि बीजेपी की सहयोगी पार्टी की तरफ से आ रही है। दरअसल, बीजेपी ने त्रिपुरा में स्थानीय पार्टी इंडीजियस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) के साथ गठबंधन करके यह चुनाव जीता है। आईपीएफटी चाहती है कि त्रिपुरा का अगला मुख्यमंत्री आदिवासी समुदाय से संबंध रखने वाले व्यक्ति को बनाया जाए। वहीं कहा जा रहा था कि बीजेपी पार्टी के त्रिपुरा चीफ विप्लव देव को मुख्यमंत्री बना सकती है, लेकिन अब बीजेपी की यह राह आसान नहीं दिख रही है।

प्रेस क्लब में आयोजित हुई पार्टी मीटिंग में आईपीएफटी के अध्यक्ष एनसी देबबर्मा ने आदिवासी सीएम बनाने की बात कही। रिपोर्ट्स के मुताबिक बीजेपी को आईपीएफटी की मीटिंग के बारे में जानकारी नहीं थी। देबबर्मा ने कहा, ‘जो नतीजे सामने आए हैं, बीजेपी और आईपीएफटी ने जो शानदार जीत त्रिपुरा में हासिल की है वह आदिवासी समुदायों के वोटों के बिना नहीं पाई जा सकती थी। हम आरक्षित आदिवासी निर्वाचन क्षेत्रों में जीत हासिल करने के कारण चुनाव जीत सके हैं। आदिवासी समुदाय के लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए हमें आदिवासी निर्वाचन क्षेत्र से जीतने वाले व्यक्ति को ही विधानसभा का नेता चुनना चाहिए और जाहिर सी बात है कि जो विधानसभा का नेता बनेगा वही मुख्यमंत्री भी बनेगा।’ देबबर्मा से जब विप्लव देव को लेकर सवाल किया गया तब उन्होंने कुछ भी कहने से साफ मना कर दिया।

उन्होंने कहा कि वह इस वक्त मुख्यमंत्री चुनने के लिए किसी भी आदिवासी नेता का नाम नहीं ले सकते और फैसला चर्चा के बाद ही लिया जाएगा। वहीं त्रिपुरा बीजेपी प्रभारी सुनील देवधर ने बताया कि उन्हें देबबर्मा के बयान के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। उन्होंने कहा, ‘मैं उस प्रेस कॉन्फ्रेंस में नहीं गया था। वह अपने विचार रख रहे थे। हम सोमवार की सुबह आईपीएफटी के नेताओं से मुलाकात कर रहे हैं और उसी वक्त उनसे इस बारे में चर्चा की जाएगी।’ वहीं इस मामले में कांग्रेस और सीपीएम के नेताओं का कहना है कि उन्हें कोई आश्चर्य नहीं हो रहा है। त्रिपुरा कांग्रेस उपाध्यक्ष तपस डे ने कहा, ‘चुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी और आईपीएफटी ने विरोधाभास पैदा करने वाली बातें कही थीं। पूरे चुनाव के दौरान आईपीएफटी ने यह जाहिर किया कि वह अलग राज्य के लिए चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं बीजेपी यह कहती रही कि उनकी पार्टी अलग राज्य का समर्थन नहीं करती, बल्कि एकत्रित त्रिपुरा के पक्ष में है। यह गठबंधन अस्थायी रहेगा।’