सुबह के 5 बज रहे होंगे, किशन भील की गर्भवती बीवी कविता को प्रसव पीड़ा शुरू हुई। पड़ोसियों की मदद से जैसे तैसे किशन ने अपनी बीवी को कपड़े के स्ट्रेचर से पांच किलोमीटर दूर ले जाने की योजना बनाई, जहां 108 एंबुलेंस सर्विस थी। यही एक रास्ता था। एंबुलेंस के ज़रिए 25 किलोमीटर दूर उन्हें एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचना था। हजारों मील से नज़र आ रहे इस सफर को दर्द से तड़प रही कविता बहुत ज़्यादा सहन नहीं कर सकी। चट्टानों से घिरे रास्ते में एक किलोमीटर की दूरी तय हुई थी, उसने एक बच्ची को जन्म दिया और दुनिया को अलविदा कह दिया। शव को अंतिम संस्कार के लिए फिरसे कपड़े के स्ट्रेचर के ज़रिए घर लाया गया।
सालों से सड़क बनाने की मांग कर रहे गांव के लोग
किशन की हर कोशिश ने दम तोड़ दिया था। उसकी आंखों के सामने सिर्फ अंधेरा था। सरकार की खराब व्यवस्था ने उसे जीवन भर का दुख दे दिया था। उसके रिश्तेदार जामसिंह राठवा बताते हैं कि कई सालों से गांव के लोग सरकार से एक सड़क बनाने का अनुरोध कर रहे हैं, ताकि कम से कम एंबुलेंस तो गांव तक पहुंच जाए, लेकिन लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
वह बताते हैं कि आस-पास कोई स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध नहीं है, यहां तक कि बिजली की आपूर्ति भी नहीं है। जामसिंह कहते हैं, “हमें भुला दिया जाता है और हमें इंसान नहीं माना जाता। अगर सड़क बन जाती, तो हम अपने परिवार के किसी सदस्य को नहीं खोते।”
कविता की यह तीसरी गर्भावस्था थी। उनके परिवार ने बताया कि उनके पति किशन एक किसान हैं। वह सिर्फ उस सुबह इतना चाहते थे कि कैसे भी कविता को करीब 25 किलोमीटर दूर कवंत के सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाएं। लेकिन ऐसा नहीं हो सका, उनकी बच्ची का स्वास्थ्य भी गंभीर है।
गांव गमगीन, हर तरफ गुस्सा
इस घटना से छोटा उदेपुर में नर्मदा नदी के किनारे बसे गांव में शोक की लहर है और लोग सड़क निर्माण में हो रही देरी से भी आक्रोशित हैं। गांव वालों का कहना है कि यह कोई पहला मामला नहीं है। गांव के निवासी नागिन राठवा ने कहा, “प्रशासन द्वारा सड़क निर्माण के लिए पहली निविदा जारी किए पांच साल हो चुके हैं। लेकिन लगभग सात किलोमीटर में से उन्होंने केवल तीन किलोमीटर सड़क का निर्माण किया है। हमें मरीजों को कपड़े के अस्थायी स्ट्रेचर में ले जाना पड़ता है ताकि वे उस स्थान तक पहुंच सकें जहां एम्बुलेंस आ सकती है। ऐसी आपात स्थिति में, समय नहीं होता है और पैदल चलना जोखिम भरा होता है। कविता से पहले तीन अन्य महिलाओं का भी यही हाल हुआ है।