सुप्रीम कोर्ट की जेल सुधार समिति ने कहा है कि ट्रांसजेंडर कैदियों के साथ अन्य श्रेणियों के कैदियों के जैसा व्यवहार किया जाना चाहिए। उन्हें समान अधिकार व सुविधाएं मिलनी चाहिए। ये सिफारिश शीर्ष अदालत के पूर्व जज जस्टिस (सेवानिवृत्त) अमिताव रॉय की अध्यक्षता वाली समिति ने की है।
अमिताव रॉय की अध्यक्षता वाली समिति ने कहा है कि जेल में सुधार लाने के लिए वहां के सुरक्षा कर्मियों को पर्याप्त और नियमित प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। उन्हें ट्रांसजेंडर कैदियों के साथ उचित तरीके से बातचीत करने में सक्षम बनाने की लगातार कोशिशें होनी चाहिए। रिपोर्ट में कहा गया है कि ट्रांसजेंडर कैदियों के खिलाफ दुर्व्यवहार, उत्पीड़न या हिंसा की घटनाओं पर अंकुश लगना चाहिए। यह लक्ष्य अकादमिक और नागरिक संगठन से जुड़े लोगों के साथ कार्यशालाएं आयोजित करके हासिल किया जा सकता है।
समिति ने सिफारिश की है कि सरकारों और जेल प्रशासन को ट्रांसजेंडर कैदियों के खिलाफ हिंसा, भेदभाव पर रोक लगाने के लिए प्रभावी कदम उठाने चाहिए। शीर्ष अदालत ने जेल सुधारों से जुड़े मुद्दों पर सिफारिश के लिए सितंबर, 2018 में जस्टिस रॉय के नेतृत्व में तीन सदस्यीय समिति बनाई थी। जस्टिस रॉय ने अपनी सिफारिशों में और भी कई अहम बातें कही हैं। ये सारी सिफारिशें विचार के लिए सुप्रीम कोर्ट के पास भेजी गई हैं।
जेलों की हालत को लेकर लगातार सख्त रवैया दिखा रहा है सुप्रीम कोर्ट
गौरतलब है कि जेलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट लगातार कड़े दिशा निर्देश जारी कर रहा है। हाल ही में जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस राजेश बिंदल की बेंच ने साल 2013 के मामले में केंद्र और राज्य सरकारों से जेल में बंद कैदियों को मुहैया कराई जाने वाली चिकित्सा सुविधाओं का ब्योरा मांगा था। शीर्ष कोर्ट ने सरकारों से कैदियों को दिए जाने वाले व्यावसायिक प्रशिक्षण के बारे में भी जानकारी मुहैया कराने को कहा था। देश भर की 1382 जेलों में अमानवीय स्थितियों पर 10 साल पहले लिए गए स्वत: संज्ञान के मामले में के बाद कोर्ट ने ये फैसला दिया।