वीरेंद्र कुमार पैन्यूली

कार्बन व्यापार में चीन, अमेरिका, रूस, जर्मनी, दक्षिण कोरिया बड़े निर्यातक हैं। इन देशों में जिन कंपनियों का कार्बन उत्सर्जन देश के सालाना कार्बन उत्सर्जन का साठ फीसद से ज्यादा है, वे अपने उत्सर्जन की भरपाई ‘कार्बन क्रेडिट’ खरीद कर करना आसान मानती हैं। प्रति इकाई ‘कार्बन क्रेडिट’ के बाजार भाव में मांग के अनुसार उतार-चढ़ाव आता रहता है। मसलन, चीन में सरकार की कार्बन उत्सर्जन रोकने पर सख्ती की नीति के कारण उद्योग ‘कार्बन क्रेडिट’ खरीदने की होड़ में हैं।

पृथ्वी का तापमान बढ़ाने में कार्बन डाई आक्साइड का योगदान लगभग सत्तर फीसद है। इसलिए पृथ्वी के बढ़ते तापमान को रोकने के लिए वायुमंडल में कार्बन उत्सर्जन को कम से कम करना जरूरी है। 2050 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन करना आवश्यक हो गया है। इसके साथ ही जो कार्बन वायुमंडल में मौजूद है, उसको भी कम करना आवश्यक है। यह जैविक और रासायनिक तरीकों से किया भी जा रहा है। इसको ‘कार्बन आफसेट’ करना भी कहा जाता है। इसमें कार्बन अवशोषकों के रूप में वनों तथा हरियाली की प्रमुख भूमिका है।

जीवाश्म इंधनों का उपयोग करने वाले उद्योग अपने कार्बन उत्सर्जन को ‘कार्बन कैप्चर स्टोरेज’ तकनीक अपना कर वायुमंडल में जाने से रोक रहे हैं। ऐसी तकनीकों में कार्बन उत्सर्जन को प्रणालियों में ही पकड़ कर, वायुमंडल में पहुंचने से पहले, समुद्र की तलहटियों, तेल या गैस के खाली कुंओं में भूमिगत कर भंडारिध्त कर दिया जाता है, जिससे उसका फिर वायुमंडल में लौटना संभव नहीं हो पाता।

अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्य प्रमाणन के बाद वायुमंडल में कार्बन डाई आक्साइड न जाने देने या वहां से इसे हटाने के लिए ‘कार्बन क्रेडिट’ दिए जाते हैं। एक मीट्रिक टन कार्बन डाई आक्साइड या उसके समतुल्य ग्रीन हाऊस गैसों को वायुमंडल में जाने से रोकने या उन्हें वायुमंडल से बाहर करने वाले को एक ‘कार्बन क्रेडिट’ दिया जाता है।

जो उद्यम या प्रतिष्ठान उपकरणों, पद्धतियों या तकनीक के बदलावों से अपने कार्बन उत्सर्जन पहले की अपेक्षा कम कर देते हैं, तो वे भी ‘कार्बन क्रेडिट’ पाने के हकदार हो जाते हैं। ‘कार्बन क्रेडिट’ के संदर्भ में मुख्य बात यह है कि अब इसके बड़े-बड़े खरीदार इसका मूल्य भी लगा रहे हैं। पेरिस समझौते में निहित प्रवधानों के अनुसार संयुक्त राष्ट्र की यूएनडीपी की निगरानी में देशों द्वारा प्रमाणित ‘कार्बन क्रेडिट कमोडिटी’ के तौर पर कार्बन बाजार में खरीदा और बेचा भी जा रहा है। इसलिए कार्बन क्रेडिट अर्जित करना पर्यावरण सुधार के साथ आय का जरिया भी हो सकता है।

2021 में वैश्विक स्वैच्छिक कार्बन बाजार करीब दो अरब डालर का था। 2020 के मुकाबले यह चौगुना था। 2030 तक यह दस से चालीस अरब डालर तक का हो सकता है। इसकी वजह है कि अमेरिका, यूरोप, कोरिया, चीन आदि देश अत्यधिक कार्बन उत्सर्जन के कारण बंदी से बचने के लिए समतुल्य कार्बन क्रेडिट बाजार से खरीद कर अपने बढ़े कार्बन उत्सर्जन की भरपाई करने लगे हैं। वर्तमान में एक कार्बन क्रेडिट से एक टन कार्बन डाई आक्साइड या उसके बराबर ग्रीन हाऊस गैसों के उत्सर्जन की भरपाई की जा सकती है।

लगभग हर देश अपनी अलग कार्बन व्यापार प्रणाली बना रहा है। इनमें एकरूपता नहीं है। जैसे इंग्लैंड की अलग है, भारत की अलग है। यूरोपीय संघ की अपनी कार्बन व्यापार प्रणाली- ईटीएस- ग्रीन हाउस गैसों के लिए है। अब तो वह कार्बन कर भी लगा रहा है। हाल में देशों के लिए इसे आसान बनाने और एकरूपता लाने के लिए संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम यानी यूएनडीपी ने डीपीजी नाम से एक मंच भी बनाया है।

भारत भी इसमें पीछे नहीं रहना चाहता है। हाल में भारत ने अपनी ‘कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग’ योजना सीसीटीएस घोषित की है। सरकार मानती है कि इससे देश को ‘संपूर्ण शून्य’ का लक्ष्य हासिल करने में आसानी होगी। साथ ही उद्योग भी अपने कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए कार्बन व्यापार की बाजार आधारित प्रक्रियाओं का लाभ लेंगे। भारत चाहता है कि देश का आंतरिक कार्बन व्यापार फले-फूले। ‘ऊर्जा संरक्षण संशोधन विधेयक 2022’ में ही केंद्र सरकार ने ‘कार्बन ट्रेडिंग फ्रेमवर्क’ स्थापित करने के लिए अधिकृत किया हुआ था। निस्संदेह इसे लेकर अब सही मायने में मानव संसाधन और तकनीकी कामों की शुरुआत भर हुई है।

कार्बन व्यापार में चीन, अमेरिका, रूस, जर्मनी, दक्षिण कोरिया बड़े निर्यातक हैं। इन देशों में जिन कंपनियों का कार्बन उत्सर्जन देश के सालाना कार्बन उत्सर्जन का साठ फीसद से ज्यादा है, वे अपने उत्सर्जन की भरपाई ‘कार्बन क्रेडिट’ खरीद कर करना आसान मानती हैं। प्रति इकाई कार्बन क्रेडिट के बाजार भाव में मांग के अनुसार उतार-चढ़ाव आता रहता है।

मसलन, चीन में सरकार की कार्बन उत्सर्जन रोकने पर सख्ती की नीति के कारण उद्योग कार्बन क्रेडिट खरीदने की होड़ में हैं। इससे वहां कार्बन क्रेडिट के भाव में तेजी आई है। दूसरी तरफ, इंग्लैंड में राजनीतिक कारणों से कार्बन क्रेडिट का भाव यूरोप से भी नीचे चला गया था। पर यह भी तो है कि जब दाम बहुत नीचे गिर जाएंगे तब तो प्रदूषण जारी रखना लाभ का सौदा ही रहेगा।

स्वैच्छिक कार्बन बाजार में सबसे ज्यादा ‘कार्बन क्रेडिट’ अवनत वनों के सुधार और उनकी पुनर्स्थापना के लिए दिए जाते हैं। इनमें सालाना वृद्धि भी कई गुना हो रही है। हवाई और समुद्री परिवहन, इस्पात और बिजली उत्पादन तथा पेट्रोलियम शोधन क्षेत्र की इकाइयां ‘कार्बन आफसेट’ या ‘कार्बन क्रेडिटों’ को खरीद कर ही अपना व्यवसाय बनाए हुए हैं। इनमें बड़े पैमाने पर वनीकरण के माध्यम से हुए कार्बन आफसेट के लिए दिए गए कार्बन क्रेडिट भी होते हैं।

जंगल लगाने या कार्बन अवशोषक के रूप में सुधारने के लिए दिए गए ‘कार्बन आफसेट क्रेडिट’ सबसे ज्यादा विवादों में रहते हैं। मई 2023 में दुनिया में वाशिंगटन आधारित प्रमुख ‘कार्बन क्रेडिट सर्टिफायर कंपनी’ ‘वीरा’ पर भी यह आरोप लगे थे कि उनसे पाए गए दसियों लाख भ्रामक गलत कार्बन आफसेट क्रेडिट का ब्योरा देकर कतिपय प्रतिष्ठानों ने अपनी-अपनी जलवायु और जैवविविधता के प्रति प्रतिबद्धता पूरी की थी। आरोपग्रस्त ‘वीरा’ के तत्कालीन मुख्य कार्यकारी अधिकारी को इस पर अपना पद छोड़ना पड़ा था। उस पर आरोप था कि उसने उन वर्षा वनों को, जो संकट में थे ही नहीं, उन्हें करीब एक अरब ‘वीसीएस वेरिफाइड कार्बन स्टैंडर्ड’ के क्रेडिट दिए थे।

आज वीरा समेत अन्य कार्बन क्रेडिट प्रमाणीकरण कंपनियां भी मानती हैं कि जंगलों से संदर्भित कार्बन आफसेट आकलन में अभी पूर्णता नहीं आई है। वन स्थितियों की आधारभूत संरचना में छेड़छाड़ करके ज्यादा कार्बन आफसेट दिखाया जा सकता है। अभी दलदली क्षेत्रों के कार्बन क्रेडिट प्रमाणीकरण की शुरुआत भर है। फिर भी वायुमंडल के कार्बन डाई आक्साईड को कम करने के लिए वनीकरण सबसे बेहतर प्राकृतिक तकनीक है।

‘कार्बन क्रेडिट’ विक्रेता के कंधे पर चढ़ कर कुछ भारी कार्बन उत्सर्जन करने वाली नामी-गिरामी कंपनियां अपने को संपूर्ण शून्य कार्बन और नकारात्मक कार्बन उत्सर्जक घोषित करके भी अपनी छवि सुधारने का प्रयास कर रही हैं। इसे यों समझ लीजिए कि किराए की कोख से संतान पैदा करवा रही हैं।

कोई भी उद्यम, जो अपने कार्बन डाई आक्साइड के उत्सर्जन में कमी लाने की दिशा में ‘कार्बन फुटप्रिंट’ अगर कम नहीं कर पा रहा है, तो दूसरों ने जो कार्बन आफसेट किया है और उन्हें उससे जो कार्बन क्रेडिट मिला है, उसको खरीद कर अपना कार्बन उत्सर्जन वैसे ही जारी रखता है, जिस ढर्रे पर करता रहा है। इसलिए स्थानीय स्तर पर जहां प्रदूषण हो रहा है वहां प्रदूषण होते रहने की संभावनाएं बनी रहती हैं। उसे दूर करने में कहीं और से खरीदे कार्बन क्रेडिट से मदद नहीं मिलेगी।

अगर कहीं से कार्बन क्रेडिट खरीद कर स्थानीय स्तर पर प्रदूषण करना जारी रखा जाए, तो इसे न्यायिक नहीं कहा जा सकता है। यह ऐसा ही जैसे एक जगह का लगा विविधता भरा जंगल काट कर दूरस्थ स्थल पर नए पेड़-पौधे उगा कर यह कहना कि सब पटरी पर ले आया गया है। कार्बन प्रदूषण पर कटौती करना जनस्वास्थ्य पर पड़ने वाले कुप्रभाव को कम करने के लिए आवश्यक है।