तिरुपति प्रसाद विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी टिप्पणी कर दी है। जोर देकर कहा गया है कि भगवान को तो राजनीति से दूर रखो, भक्तों की आस्था का सवाल है ये। असल में सुब्रमण्यम स्वामी ने एक याचिका दायर की थी, उसमें कहा गया था कि यह आस्था का विषय है अगर प्रसाद में इस तरह की मिलावट का आरोप लगा है। एडवोकेट राजशेखर राव उनकी याचिका को लेकर अदालत पहुंचे थे।

तिरुपति प्रसाद को लेकर सुप्रीम सुनवाई

अब सुनावई के दौरान वकील ने कहा कि सुब्रमण्यम स्वामी तो एक भक्त होने के नाते यहां पर आए हैं। प्रेस में जिस तरह से प्रसाद में मिलावट की बात आई है, इसका प्रभाव दूर तक पड़ेगा और इससे सांप्रदायिक सौहार्थ भी बिगड़ सकता है। यह सारे मामले काफी चिंता करने वाले हैं। अगर भगवान के प्रसाद पर ही सवाल उठ रहे हैं, जांच होना बहुत जरूरी है।

तिरुपति बालाजी मंदिर के प्रसाद को लेकर क्यों चल रहा विवाद?

किस बात से खफा हुए जज?

वैसे इस मामले में तिरुपति मंदिर बोर्ड की तरफ से सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ और राज्य सरकार की तरफ से मुकुल रोहतगी पेश हुए थे। जब एडवोकेट रोहतगी की तरफ से एक सवाल उठाया गया, उसके जवाब में ही जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि जब आप संवैधािक पद पर रहते हैं, उम्मीद की जाती है कि देवताओं को राजनीति से दूर रखा जाएगा। कोर्ट ने तो यहां तक कहा कि जब एसआईटी का गठन किया जा चुका है, तो फिर नतीजा आने से पहले ही प्रेस में जाने की क्या जरूरत है।

प्रसाद विवाद शुरू कैसे हुआ?

अब जानकारी के लिए बता दें कि यह मामला तब तूल पकड़ा था जब सीएम चंद्रबाबू नायडू ने दावा किया कि तिरुपति मंदिर में मिल रहे प्रसाद में मिलावट है। पिछली सरकार द्वारा क्वालिटी के साथ खिलवाड़ किया गया। उन्होंने एक बैठक में कहा था कि जो तिरुमाला लड्डू मिलता था, वो खराब क्वालिटी का होता था, वो घी की जगह जानवरों की चर्बी का इस्तेमाल कर रहे थे। जब से टीडीपी की सरकार आई है, पूरी प्रक्रिया को साफ किया गया है और लड्डू को गुणवक्ता को सुधारा गया है।

प्रसाद पर हो रही राजनीति

अब इस पूरे विवाद पर और नायडू के दावों पर जगन रेड्डी की पार्टी की तरफ से मुंहतोड़ जवाब दिया गया था। तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम के पूर्व चेयरमेन और YSRCP के वरिष्ठ नेता वाई वी सुबा रेड्डी ने कहा था कि नायडू राजनीतिक फायदे के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। जो घी पहले इस्तेमाल होता था, वो टॉप क्वालिटी का था, राजस्थान और गुजरात से जो गाय आती थीं, उनके जरिए निकलवाया जाता था।