नौकरशाही में क्या सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा है? यह सवाल शासन एवं प्रशासन पर गहरी नजर रखने वालों के बीच काफी चर्चा में है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक तीन महीने के अंदर चार IAS अफसरों के इस्तीफे की वजह से नौकरशाही में भी दो फाड़ हो गए हैं। IAS बिरादरी में गोलबंदी होने के साथ-साथ चिंताएं भी बढ़ गई हैं। गौरतलब है कि पूर्व वित्त सचिव सुभाष गर्ग ने जुलाई में उस वक्त इस्तीफा दिया, जब केंद्र सरकार ने वित्त मंत्रालय से उनका ट्रांसफर कर दिया। सुभाष गर्ग के कुछ साथियों ने इसे ‘प्रोटेस्ट’ के तौर पर देखा।
वहीं, अगस्त महीने में अरुणाचल प्रदेश, गोवा, मिजोरम और केंद्रशासित प्रदेश कैडर के युवा अधिकारी जी कन्नन ने भी सेवा छोड़ दी। कन्नन ने साफ किया कि उन्होंने जम्मू-कश्मीर में पांच अगस्त के बाद केंद्र सरकार द्वारा लागू नीतियों के खिलाफ इस्तीफा दिया है।कन्नन के कुछ ही दिन बाद कर्नाटक कैडर के अधिकारी एस शशिकांत सेंथिल ने भी IAS से इस्तीफा दे दिया। उनका कहना था कि जब सरकार लोकतांत्रिक अवमूल्यन की ओर अग्रसर हो तो IAS अधिकारी बने रहना ‘अनैतिक’ लगता है। जिस दिन सेंथिल ने इस्तीफा दिया उसी दिन नीति आयोग में स्थानांतरित AGMUT कैडर के अधिकारी कशिश मित्तल ने भी अपने पद से त्यागपत्र दे दिया। उनका पूर्वोत्तर में ट्रांसफर किया गया था।
माना जा रहा है कि अधिकारियों के ये ट्रांसफर काफी कम हैं, लेकिन यह अच्छे संकेत नहीं है। इन घटनाओं के बाद नौकरशाहों में काफी चर्चाएं हो रही हैं।’द प्रिंट’ में छपी एक रिपोर्ट में बताया गया है कि अधिकारी इस समस्या को एक प्रारंभिक ‘चेतावनी वाले संकेत’ मान रहे हैं। द प्रिंट के साथ बातचीत में रिटायर्ड IAS अधिकारी टीआर रघुनंदन ने कहा, “कम से कम इस्तीफा दे चुके दो अधिकारियों ने सार्वजनिक रूप से बयान दिया है कि विवेक की भारी कमी है। हमें उठना चाहिए और संज्ञान लेना चाहिए।”
इस बीच मीडिया रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि कुछ अधिकारियों का मानना है कि इस्तीफा देने वाले अफसरों में अधिकांश ने प्राइवेट सेक्टर में बेहतर अवसर या राजनीति में जाने के लिए सर्विस से त्यागपत्र दिया है। अधिकारी इस बात पर बंटे हैं कि क्या सेवा से इस्तीफा देना सही तरीका है? अगर सेनवा में नैतिक रूप से या पेशेवर रूप से अक्षम महसूस करता है तो आईएएस एसोसिएशन की चुप्पी भी कई लोगों को चिंतित कर रही है।