गुजरात में राजकोट के सौराष्ट्र यूनिवर्सिटी के 2.8 लाख स्टूडेंट्स का भविष्य अधर में लटक गया है। जानकारी के मुताबिक सरकार दावा है कि ‘विश्वविद्यालय अनुदान आयोग’ (UGC) ने बाहरी कोर्सेज को अमान्य घोषित नहीं किया है, जबकि आयोग के चेयरमैन डीपी सिंह ने कहा है कि मामले की बारीकी से जांच की जाएगी। दो दिवसीय राष्ट्रीय कुलपति सम्मेलन में मुख्य अतिथि के रूप में भाग लेने गुजरात विद्यापीठ पहुंचे डीपी सिंह ने विश्वविद्यालय पर पूछे गए सवालों के जवाब में कहा, “विश्वविद्यालयों द्वारा संचालित बाहरी कार्यक्रमों का मुद्दा गुजरात में हमारे संज्ञान में लाया गया था। मुझे इसकी विस्तार से जांच करनी होगी और छात्रों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए आवश्यक कार्रवाई की जाएगी। मैं कानूनी रूप से और व्यापक रूप से मामले की जांच करने के बाद टिप्पणी कर सकूंगा।”

हालांकि, सिंह ने कहा कि उन्हें बताया गया है कि ये विश्वविद्यालय उनकी विधियों या अध्यादेश के तहत पाठ्यक्रम चला रहे हैं, उन्हें इसकी पूरी जांच करनी होगी। उन्होंने कहा “यूजीसी एक मानक तय रखने के लिए निश्चित नियम-कायदे बनाता है। यह तय किया है कि डिग्री का नामकरण क्या होना चाहिए, लेकिन पाठ्यक्रम का निर्धारण विश्वविद्यालयों द्वारा अध्यादेश के अनुसार और अकादमिक परिषद से अनुमोदन के बाद किया जाता है। मुझे बताया गया है कि वे इसे अपने मुताबिक चला रहे हैं लेकिन मुझे इसकी जांच करनी होगी।” गौरतलब है कि 2015 से अब तक 2.8 लाख से अधिक छात्रों को बाहरी पाठ्यक्रम में डिग्रियां दी गई हैं।

राज्य के शिक्षा मंत्री भूपेंद्रसिन्ह चुडास्मा ने रविवार शाम आयोग के चेयरमैन डीपी सिंह से मुलाकात की और विश्वविद्यालय के कुलपति नितिन पेठानी और प्रमुख सचिव अंजू शर्मा ने गुजरात विद्यापीठ में यूजीसी के अध्यक्ष के साथ बैठक की। बैठक में विश्वविद्यालय के पूर्व उपाध्यक्ष प्रतापसिंह चौहान भी उपस्थित थे। ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ को प्रमुख शिक्षा सचिव अंजू शर्मा ने बताया, “यूजीसी के अध्यक्ष ने साफ किया है कि उन्होंने (UGC) ऐसा कोई निर्देश जारी नहीं किया, लेकिन यदि उन्हें कुछ अनियमितताएं मिलीं तो वे विश्वविद्यालय को सूचित करेंगे।”