Caste Census In India: केंद्र की मोदी सरकार ने जाति जनगणना को हरी झंडी दिखा दी है। लंबे समय से विपक्ष द्वारा यह मांग की जा रही थी, नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने तो इसे चुनावी मुद्दा भी बना रखा था। अब बिहार चुनाव से ठीक पहले मोदी सरकार ने यह बड़ा दांव चला है, जाति जनगणना करवाने का फैसला लेकर कई समीकरण बदल दिए हैं। अब कुछ जानकार इसे मोदी सरकार का एक मास्टरस्ट्रोक जरूर मानते हैं, लेकिन किसी भी देश में जाति जनगणना करवाना इतना आसान नहीं होता है, कई तरह की ऐसी चुनौतियां भी होती हैं जिनका सामना करना पड़ जाता है।

चुनौती नंबर 1

यहां भी सबसे बड़ी चुनौती तो यह रहने वाली है कि तकनीक के साथ और सोशल मीडिया के दौर में कई खबरें वायरल हो जाती हैं। अब अगर गणना करने वाले अधिकारियों को लेकर किसी तरह की फर्जी खबर ने जोर पकड़ लिया तो सर्वे करना ही मुश्किल हो जाएगा, अधिकारियों के जान पर भी बात आ सकती है। इस स्थिति में जोर देकर कहा गया है कि अगर समय रहते जागरूकता अभियान चलाए जाएं तो इस चुनौती से पार पाया जा सकता है।

चुनौती नंबर 2

एक बड़ी चुनौती केंद्र सरकार के सामने भी रहने वाली है। जिस समय गणना की जाएगी तब ओबीसी समुदाय को कौन सी लिस्ट में शामिल किया जाए। इस देश में अभी तक ओबीसी समुदाय को लेकर कोई सिंगल लिस्ट कभी भी तैयार नहीं हुई है। जब भी सरकारी नौकरियों में आरक्षण की बात होती है, तब ओबीसी समुदाय की गणना के लिए नेशनल कमिशन फॉर बैकवर्ड क्लास द्वारा बनाई गई सेंट्रल लिस्ट का इस्तेमाल किया जाता है। अब जो इस बार जाति जनगणना करवाई जाएगी, तब भी क्या इसी सेंट्रल लिस्ट का इस्तेमाल किया जाएगा या फिर कोई और रास्ता चुना जाएगा, यह राजनीतिक फैसला रहने वाला है।

जाति जनगणना की पूरी कहानी

चुनौती नंबर 3

वैसे सरकार के सामने ही एक बड़ी चुनौती यह भी रहेगी कि जब जाति जनगणना के आंकड़े सामने आएंगे तब देश में ओबीसी समुदाय की स्थिति काफी बदल सकती है। संभावना इस बात की भी है कि आरक्षण की सीमा को 50 फीसदी से ज्यादा बढ़ाने की बात हो जाए। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सुरक्षित रखते हुए कैसे बदलाव किए जाएंगे, यह एक बड़ा सवाल रहेगा।

जातिगत जनगणना का मतलब क्या है?

जातिगत जनगणना का सीधा मतलब होता है कि देश में किसी जाति के कितने लोग हैं, इसके स्पष्ट आंकड़े सामने रखे जाएं। अब देश में जातिगत जनगणना पहले भी हुई है, लेकिन तब ओबीसी को उसमें शामिल नहीं किया जाता था। ऐसे में बात जब भी जातिगत जनगणना की होती है, सबसे ज्यादा चर्चा इस बात की रहती है कि देश में ओबीसी वर्ग अब कितना ज्यादा बड़ा बन चुक है, आखिर इस समाज के कितने लोग देश में रह रहे हैं? इस बार भी जो जातिगत जनगणना करवाई जाएगी, सभी की नजर सिर्फ इस बात पर रहेगी कि ओबीसी कितने प्रतिशत हैं।

जातिगत जनगणना की अब क्यों जरूरत?

असल में देश में जब मंडल कमीशन लागू हुआ था, तब कहा गया था कि देश में ओबीसी वर्ग की आबादी 52 फीसदी है। लेकिन तब वीपी सरकार जिस 52 फीसदी के आंकड़े तक पहुंची थी, उसका आधार 1931 का सेंसस था। ऐसे में उसे कितना सटीक माना जाए, यही सबसे बड़ा सवाल रहा। तर्क दिया गया कि देश में समय के साथ ओबीसी की आबादी भी बदल चुकी है, काफी ज्यादा बढ़ी भी है, ऐसे में 52 फीसदी का आंकड़ा कितना सही माना जाए? अब यह सवाल उन पार्टियों द्वारा सबसे ज्यादा उठाया गया जो चाहते थे कि जातिगत जनगणना करवाई जाए।

जातिगत जनगणना से कोई फायदा?

जातिगत जनगणना का जो समर्थन करते हैं, उनका तो साफ मानना है कि एक सेंसस से पिछड़े-अति पिछड़े वर्ग के बारे में काफी कुछ पता चलेगा। उनकी शैक्षणिक, सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक स्थिति को लेकर स्पष्टता आएगी। जब उन आंकड़ों में स्पष्टता आएगी तब सरकार भी उनके लिए और मजबूती के साथ नीतियां बना पाएगी। जरूरत पड़ने पर उनकी उचित सहायता भी की जा सकेगी।

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