लोकनायक अस्पताल कोरोना के कचरे के ढेर पर बैठा है। अस्पताल के रसोईघर व सर्जरी इकाई के पास अस्पताल के बायोमेडिकल कचरे का अंबार लगा है। पीपीई किट से लेकर, मास्क, ग्लब्स, सिंरिंज व दूसरे कचरे का यह ढेर कोरोना कचरा निपटान के कड़े नियमों का तो उल्लंघन कर ही रहा है, साथ ही अस्पताल के खाने की स्वच्छता को भी गहरे खतरे में डाल रहा है।
बीते दिनों दो रसोईकर्मी कोरोना संक्रमित हो भी चुके हैं। आंधी व बारिश के इस मौसम में खुले में पड़े इस कचरे की कई गठरियां बुरी तरह फट गई हैं। कचरा कई दिनों तक पड़ा रहता है। जबकि नियम कहता है कि इसे दोहरे पैकेट में सील बंद करके ही एक स्थान से दूसरे कचरा निपटान केंद्र तक ले जाया जा सकता है। वह भी इसी स्थान पर पूरी तरह से संक्रमण रहित करके ही ले जाया जा सकता है।
यहां से कोई गुजर नहीं सकता पूरा इलाका ही संक्रमित है। परिसर में घुस आए आवारा कुत्ते भी कई बार पैकेट को फाड़ दे रहे हैं। अस्पताल से रोजाना जितना कचरा रोज निकल रहा है उतना रोज उठाया नहीं जा रहा है। अस्पताल की मजबूरी है कि यहां भी जगह नहीं बची है। यह हाल सफदरजंग अस्पताल का है जहां पूरा कचरा रोज नहीं उठाया जा रहा है।
दरअसल इन दोनों अस्पतालों से बायोमेडिकल कचरे को उठाने का काम दिल्ली प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) की ओर से निर्धारित एसएमएस वाटर ग्रेसेस को दिया गया है। जिसकी रोजाना 12 टन बायोमिडेकल कचरा जलाने की क्षमता है। इस कंपनी के पास जीटीबी, राजीव गांधी अस्पताल के अलावा मध्य दिल्ली व दक्षिण पश्चिम व पश्चिमी जिले के तहत आने वाले 89 कोविड सेंटर व निजी अस्पतालों के कचरे उठाने का काम है। जिसमें कोविड व गैर कोविड दोनों तरह के बायोमेडिकल वेस्ट का काम हैं।
उच्चस्तरीय सूत्रों की माने तो सरकारी अस्पतालों के एक टन कचरा उठाने का कोई भुगतान नहीं होता इसके ऊपर होने पर 115 रुपए प्रति बिस्तर महीने के हिसाब से पैसा मिलता है। कंपनियों को सरकारी से ज्यादा निजी अस्पतालों में अच्छा पैसा मिलता है इसलिए इनकी रुचि सरकारी से ज्यादा निजी अस्पतालों का कचरा उठाने में होती है। अस्पताल की बायोमेडिकल वेस्ट की इंचार्ज डॉ सगुप्ता ने बताया कि अस्पताल में रोजाना कम से कम 1200 किलोग्राम कचरा निकल रहा है लेकिन इतना यहां से उठाया नहीं जा रहा हमने अस्पताल परिसर में दो डंपिंग साइट बनाई थी।

