शुक्रवार (26 अगस्त) को बंबई हाई कोर्ट ने हाजी अली दरगाह के मजार वाले हिस्से (गर्भगृह) में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध को हटा दिया। अदालत ने हाजी अली ट्रस्ट को इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करने के लिए छह हफ्तों का वक्त दिया है। अदालत के फैसले पर मुस्लिम समाज के तरफ से मिली जुली प्रतिक्रिया आ रही है। जहां कई नारीवादी कार्यकर्ताओं ने अदालत के फैसले का स्वागत किया है वहीं कुछ मुस्लिम मौलानाओं ने इसे उचित नहीं माना है। दरगाह के मजार वाले हिस्से में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी को जाकिया सोमन और नूरजहां नियाज ने चुनौती दी थी।
हाई कोर्ट के फैसले पर टिप्पणी करते हुए मौलाना साजिद रशीदी ने समाचार एजेंसी एएनआई से कहा, “ये बहुत गलत है क्योंकि ऐसा लगता है कि अदालत ने शरिया कानून की जानकारी के बिना ये फैसला लिया है।” वहीं उत्तर प्रदेश की पहली महिला काज़ी हिना ज़हरी ने अदालत के फैसले को बहुत अच्छा और तार्किक बताते हुए कहा, “जब महिलाएं पाक काबा के गर्भगृह में जा सकती हैं तो दूसरी जगहों पर रोक क्यों? “अदालत के फैसले पर एमआईएम के हाजी रफात ने कहा, “हाई कोर्ट के दखल नहीं देन चाहिए था लेकिन उन्होंने अपना फैसला दे दिया है तो हम इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएंगे।” वहीं नारीवादी कार्यकर्ता बृंदा एडीजे ने अदालत के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि “ये कोई दया नहीं है। प्रार्थना करना हमारा संवैधानिक अधिकार है। दूसरे धार्मिक स्थलों को भी इस पर अमल करना चाहिए।
उच्च न्यायालय ने कहा, ‘राज्य सरकार और हाजी अली दरगाह न्यास को दरगाह में प्रवेश करने वाली महिलाओं की सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम सुनिश्चित करना होगा।’ इस साल जून में उच्च न्यायालय ने याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रखा था। इस याचिका में कहा गया है कि कुरान में लैंगिक समानता अंतर्निहित है और पाबंदी का फैसला हदीस का उल्लंघन करता है जिसके तहत महिलाओं के मजारों तक जाने पर कोई रोक नहीं है।
न्यायमूर्ति वी एम कानाडे और न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे की खंडपीठ ने कहा, ‘हाजी अली दरगाह में महिलाओं के प्रवेश पर लगाया गया प्रतिबंध भारत के संविधान की धारा 14, 15, 19 और 25 का विरोधाभासी है।’ इन धाराओं के तहत किसी भी व्यक्ति को कानून के तहत समानता हासिल है और अपने मनचाहे किसी भी धर्म का पालन करने का मूलभूत अधिकार है। ये धाराएं धर्म, लिंग और अन्य आधारों पर किसी भी तरह के भेदभाव पर पाबंदी लगाती हैं और किसी भी धर्म को स्वतंत्र रूप से अपनाने, उसका पालन करने और उसका प्रचार करने की पूरी स्वतंत्रता देती हैं। महाराष्ट्र सरकार ने पहले अदालत में कहा था कि हाजी अली दरगाह के मजार वाले हिस्से में महिलाओं के प्रवेश पर रोक तभी होनी चाहिए जब कि कुरान में ऐसा उल्लेख किया गया हो।
This is very wrong because seems like Court has taken step without knowing about Sharia law: Maulana Sajid Rashidi pic.twitter.com/WtMngNykTD
— ANI (@ANI) August 26, 2016