एक वकील ने नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल को एक मामले में आवेदन देकर सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश को न मानने की अपील की। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो वकील के होश उड़ गए। तीन जजों की बेंच के सामने वो दुहाई देने लगा कि गलती हो गई। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए आदेश दिया कि ये महज गलती नहीं थी। एडवोकेट ने जानकर ट्रिब्यूनल को आवेदन दिया था। अदालत ने आरोपी को नोटिस देकर पूछा कि क्यों न उसके खिलाफ गंभीर अवमानना का केस शुरू किया जाए। वकील पर पहले से ही शीर्ष अदालत में अवमानना का केस चल रहा है।

फैसला देने वाले जस्टिस पर उठा दिया सवाल

नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल को दिए आवेदन में वकील दीपक खोसला ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट का 23 सितंबर 2022 का आदेश बेमतलब है। इसे मानने की जरूरत नहीं है, क्योंकि जिस बेंच ने ये आदेश दिया था उनमें से एक जज दूसरी पार्टी से जुड़ा था। खास बात है कि जिस मामले का जिक्र खोसला ने किया था उस फैसले को देने वाली बेंच का कोई भी जज ट्रिब्यूनल में चल रहे केस की पार्टी से नहीं जुड़ा था। जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संजट करोल की बेंच के समक्ष ये मामला सामने आया तो उनका गुस्सा भड़क गया।

बेंच ने खोसला से पूछा कि वो जज का नाम बताए। तब खोसला ने कहा कि जज का नाम पीएस नरसिम्हा है। फिर खोसला ने कहा कि उसने गलती से ट्रिब्यूनल को ये आवेदन कर दिया था। उसे लगता था कि जस्टिस पीएस नरसिम्हा सुप्रीम कोर्ट में आने से पहले ट्रिब्यूनल में चल रहे मामले के एक पक्ष से मध्यस्थ की भूमिका निभा रहे थे।

जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संजट करोल की बेंच के सामने खोसला की तरफ से पेश सीनियर एडवोकेट सलमान खुर्शीद ने तमाम दलीलें दी जिससे उसका पीछा छुड़ाया जा सके। लेकिन कोर्ट कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थी। बेंच ने अपने फैसले में कहा कि खोसला खुद एक वकील है। वो कई अदालतों में पेश होता रहता है।

वकील से पूछा कि उसके खिलाफ एक्शन क्यों न लिया जाए?

बेंच का कहना था कि 23 सितंबर 2022 का जो आदेश सुप्रीम कोर्ट से दिया गया था, वो जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने दिया था। ये दोनों ही ट्रिब्यूनल के सामने चल रहे मामले के किसी भी पक्ष से नहीं जुडे़ थे। कोर्ट ने कहा कि खोसला ने जो आवेदन ट्रिब्यूनल के सामने दिया था वो अनजाने में नहीं था। वकील से पूछा कि उसके खिलाफ एक्शन क्यों न लिया जाए?