भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने निष्कर्ष निकाला है कि वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद स्थल पर मौजूदा संरचना के निर्माण से पहले एक बड़ा हिंदू मंदिर मौजूद था। एएसआई ने कहा है कि उसने वैज्ञानिक अध्ययन और ऑब्जर्वेशन पर भरोसा किया है। इस निष्कर्ष का समर्थन करने के लिए पर्याप्त सबूत भी मौजूद हैं। माना जाता है कि मौजूदा काशी विश्वनाथ मंदिर के बगल में स्थित एक मंदिर को मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेश पर तोड़ दिया गया था और उसके खंडहरों पर ज्ञानवापी मस्जिद बनाई गई थी।
इसके लिए सबसे लोकप्रिय प्राथमिक स्रोत साकी मुस्तैद खान की मासिर-ए-आलमगिरी है, जो 1707 में औरंगजेब की मृत्यु के तुरंत बाद लिखा गया यह एक फारसी भाषा का इतिहास है। एएसआई रिपोर्ट में इतिहासकार जदुनाथ सरकार के 1947 के पाठ के अनुवाद का उल्लेख है।
औरंगजेब ने तुड़वाए मंदिर
मासिर-ए-आलमगिरी के मुताबिक, “महामहिम (औरंगजेब) ने, इस्लाम की स्थापना के लिए उत्सुक होकर, सभी प्रांतों के राज्यपालों को काफिरों के स्कूलों और मंदिरों को ध्वस्त करने का आदेश जारी किया और तुरंत अन्य धर्म की शिक्षा और सार्वजनिक अभ्यास को बंद कर दिया।” औरंगजेब के शासनकाल में 9 अप्रैल, 1669 को जारी किए गए शाही फरमान के कारण काशी में विश्वनाथ मंदिर और मथुरा में केशवदेव मंदिर दोनों नष्ट हो गए। सरकार ने इसे औरंगज़ेब का हिंदू धर्म पर हमला बताया।
इतिहासकार एस ए ए रिज़वी ने लिखा है, “औरंगज़ेब का शासनकाल अकबर की सह-अस्तित्व की नीति से अलग था। 1665 में, उन्होंने हिंदू व्यापारियों द्वारा आयात पर मुसलमानों द्वारा देय दर से दोगुना सीमा शुल्क तय किया और दो साल बाद, मुसलमानों के लिए सीमा शुल्क पूरी तरह से समाप्त कर दिया। द वंडर दैट वाज़ इंडिया वॉल्यूम II (1200-1700) (1987) में रिज़वी ने लिखा, “जनवरी 1669 में प्रिंस आज़म (औरंगज़ेब के तीसरे बेटे) की शादी ने सम्राट को असंख्य शुद्धतावादी अध्यादेश जारी करके अपनी रूढ़िवादिता दिखाने का मौका दिया।”
खंडहर में बदल दिए गए मंदिर
रिज़वी ने लिखा, “मंदिरों और हिंदू शिक्षा केंद्रों को ध्वस्त करने का एक सामान्य आदेश जारी किया गया था। बनारस का प्रसिद्ध विश्वनाथ मंदिर और मथुरा का केशव राय मंदिर, जिसे दारा शुकोह ने एक पत्थर की रेलिंग भेंट की थी, खंडहर में तब्दील हो गए। यह नीति सुदूर पूर्वी बंगाल, पलामू, राजस्थान और बाद में दक्कन में भी लागू की गई।”
राजनीतिक मकसद
इतिहासकार रिचर्ड ईटन ने तर्क दिया कि 1669 का फरमान सभी मंदिरों को तत्काल नष्ट करने का सामान्य आदेश नहीं था, बल्कि यह उन संस्थानों को टारगेट किया था जहां एक निश्चित प्रकार की शिक्षा हो रही थी। इतिहासकार सतीश चंद्र ने लिखा है कि औरंगजेब ने मंदिरों को विध्वंसक विचारों के प्रसार के केंद्र के रूप में देखना शुरू कर दिया, यानी ऐसे विचार जो रूढ़िवादी तत्वों को स्वीकार्य नहीं थे। एक सिद्धांत यह भी है कि छत्रपति शिवाजी के आगरा में मुगल हिरासत से भागने के बाद, अपमानित औरंगजेब ने प्रतिशोध के रूप में काशी मंदिर को नष्ट करने का आदेश दिया था।
ईटन ने लिखा, “1669 में बनारस में जमींदारों के बीच विद्रोह हुआ, जिनमें से कुछ पर संदेह था कि उन्होंने शिवाजी, जो औरंगजेब के कट्टर दुश्मन थे, को शाही नजरबंदी से भागने में मदद की थी।” इतिहासकार ऑड्रे ट्रुश्के ने लिखा, “औरंगजेब ने 1669 में बनारस के विश्वनाथ मंदिर का बड़ा हिस्सा ढहा दिया था। यह मंदिर अकबर के शासनकाल के दौरान राजा मान सिंह द्वारा बनवाया गया था, जिनके परपोते जय सिंह ने 1666 में शिवाजी को मुगल दरबार से भागने में मदद की थी।
(Story By- Arjun Sengupta)