सुब्रमण्यम स्वामी भारतीय राजनीति का वह चेहरा हैं जिन्हें आप पसंद करें ना करें, मगर नजरअंदाज नहीं कर सकते। कभी RSS के धुर विरोधी रहे स्वामी आज संघ के खासमखास माने जाते हैं। स्वामी जिस राजनीतिक दल से जुड़े, उसे टॉप नेताओं के भरोसेमंद बने, फिर रिश्तों में कड़वाहट आती रही। यह उनके साथ बार-बार होता है। वे हमेशा पावर सर्किल में रहते हैं, मगर कभी बड़ा पद हासिल नहीं कर पाए। कभी RSS को देश के लिए खतरा बताने वाले स्वामी आज भाजपा के सदस्य हैं। कभी इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के करीब रहे स्वामी आज कांग्रेस के सबसे तीखे विरोधियों में गिने जाते हैं। किसी राजनैतिक विचारधारा से जुड़कर रह पाना स्वामी की आदत नहीं। आइए सुब्रमण्यम स्वामी के राजनैतिक सफर पर डालते हैं एक नजर:
IIT से निकाले गए स्वामी अमेरिका जाने की सोच ही रहे थे कि जनसंघ नेता नानाजी देशमुख ने उन्हें राज्यसभा भेजने का फैसला किया। स्वामी 1974 में संसद पहुंचे और इमरजेंसी के दौर में यूएस से भारत आए और लोकसभा सेशन में हिस्सा लेने के बाद लौट भी गए। स्वामी के राजनीतिक जीवन की शुरुआत लेफ्ट-लिबरल राजनीति से हुई थी। तब वह इंदिरा गांधी की तारीफ किया करते थे। जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने तो यह कहा जाता था कि वे स्वामी से बिना पूछे कुछ भी नहीं करते। राजीव की मौत के बाद गांधी परिवार से स्वामी की दूरी बढ़ती चली गई।
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1999 में अटल बिहारी की 13 महीने की सरकार को गिराने के लिए उन्होंने सोनिया गांधी, मायावती और जयललिता को एक मंच पर खड़ा कर दिया। आज वह इन तीनों नेताओं के सबसे बड़े विरोधियों में से हैं। तीनों को स्वामी ने उस वक्त दुर्गा, सरस्वती और लक्ष्मी विशेषण का प्रयोग किया था। लेकिन जयललिता को जेल भेजने में सबसे अहम भूमिका भी स्वामी ने ही निभाई। सोनिया के खिलाफ नेशनल हेराल्ड मामले में केस करने के अलावा वह उनके सबसे कट्टर विरोधी हैं। इस दौरान वे संघ पर भी हमलावर रहे। स्वामी की बदौलत ही कैलाश मानसरोवर जाने का रास्ता खुल सका। 1981 में उन्होंने ही चीन नेतृत्व से इसके लिए बात की थी।
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स्वामी जनता पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से थे। इमरजेंसी के बाद जनता पार्टी की सरकार बनी थी मगर बाद में पार्टी में टूट पड़ गई। स्वामी डटे रहे और 1990 से 2013 में बीजेपी में विलय तक वह पार्टी के अध्यक्ष बने रहे। 1990-91 में चंद्रशेखर की सरकार में स्वामी वाणिज्य और कानून मंत्री रहे। इस दौरान उन्होंने देश में आर्थिक सुधारों के लिए ब्लूप्रिंट बनाया। बाद में इसी को अगले वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने आगे बढ़ाया। नरसिम्हा राव सरकार के काल में स्वामी विपक्ष के नेता थे मगर उन्हें कैबिनेट रैंक मिला। 2008 में उन्होंने 2जी स्कैम पर लड़ाई छेड़ी।
स्वामी को हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से इसलिए निकाल दिया गया था क्योंकि उन्होंने जुलाई 2011 में एक अखबार में इस्लाम, खासतौर से मुस्लिमों पर एक लेख लिखा था। जिसका शीर्षक था ‘इस्लामी आतंकवाद को कैसे खत्म करें।’ उन्हें सेवा से हटाते हुए यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट ऑफ साउथ एशियन स्टडीज ने स्वामी को ‘कपटी’ और ‘मामूली’ जनता पार्टी का अध्यक्ष बताया। उन्हें पार्टी में शामिल कर भाजपा ने एक झटके में ही स्वामी की पार्टी का कद मामूली से ‘बहुसंख्यक’ कर दिया।