मोहर्रम पर लगातार ड्रम पीटे जाना कलकत्ता हाईकोर्ट को भी अच्छा नहीं लगता। उन्होंने पश्चिम बंगाल पुलिस को सख्त एक्शन लेने की हिदायत दी। यही नहीं हाईकोर्ट ने सरकार को एक गाइडलाइन भी दी है। इसमें दर्ज है कि मोहर्रम में किस समय पर ढोल बजाया जा सकता है।
दरअसल हाईकोर्ट के पास एक महिला गुहार लेकर पहुंची थी। उसका कहना था कि मोहर्रम के दौरान असामाजिक तत्व तेज आवाज में ढोल के साथ ड्रम पीटते हैं। इससे उनका जीना मुहाल हो रहा है। अदालत ने जब पूछा कि आप पुलिस के पास क्यों नहीं गईं तो महिला का कहना था कि वो पुलिस के पास गई थीं। लेकिन उनसे कहा गया कि कोर्ट का आर्डर लेकर आइए। हम मुस्लिमों को मोहर्रम के दौरान ऐसे ही पाबंद नहीं कर सकते।
चीफ जस्टिस टीएस शिवगंगानम और जस्टिस हिरनमय भट्टाचार्य की बेंच ने पुलिस की कार्यवाही पर हैरत जताते हुए कहा कि इस सिलसिले में पहले ही कोई सख्त एक्शन लिया जाना था। फिर बेंच ने पुलिस के साथ प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को इस सिलसिले में सख्त हिदायते जारी की। उनका कहना था कि समाज में बीमार लोग भी होते हैं। महिला और बच्चो को भी शोर पसंद नहीं होता। पढ़ने वाले बच्चों को भी शोर से एलर्जी होती है। लिहाजा पुलिस मोहर्रम में एक तय समय सीमा में ही ड्रम बजाने की अनुमति दे।
संविधान में धार्मिक समारोह आयोजित करने की छूट पर दूसरे को परेशान तो नहीं कर सकते- बोला HC
संविधान के आर्टिकल 25(1) और 19(1)(a) का जिक्र करते हुए चीफ जस्टिस की बेंच ने कहा कि इनके जरिये लोगों को अपना त्योहार मनाने की अनुमति दी गई है। लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि आप लोगों को शोर सुनने तो विवश करें। हमें इसके लिए कुछ न कुछ तो करना होगा जिससे लोगों को परेशानी न हो।
हाईकोर्ट ने कहा कि ढोल बजाने की अनुमति सुबह और शाम के लिए ही देना ठीक रहेगा। सुबह दो घंटे और शाम को दो घंटे। अदालत ने कहा कि सुबह ढोल पीटने का काम आठ बजे से पहले किसी भी सूरत में नहीं होना चाहिए। शाम को भी 7 बजे के बाद ढोल की आवाज सुनाई नहीं देनी चाहिए। बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि टॉप कोर्ट भी मानती है कि धार्मिक समारोह के दौरान किसी की वजह से दूसरे किसी को दिक्कत नहीं होनी चाहिए। अदालत ने राज्य सरकार को आदेश देते हुए कहा कि वो बगैर पूर्व अनुमति के ऐसे आयोजन न होने दे।