NDPS एक्ट के मामले के आरोपी को दिल्ली हाईकोर्ट ने नौ साल जेल में रहने के बाद जमानत पर रिहा कर दिया। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान माना कि नौ सालों से ट्रायल चल रहा है लेकिन नतीजा नहीं निकल सका। कोर्ट की टिप्पणी थी कि ये प्रक्रिया भी किसी सजा से कम नहीं है। संविधान की धारा 21 सभी को आजादी से जीने का हक देती है, लेकिन इस मामले में देखा जाए तो लगता नहीं कि चीजें सही तरीके से हुईं।

हालांकि, जस्टिस सुब्रमोनियम प्रसाद ने अपने फैसले में कहा कि नशीले पदार्थों की तस्करी ना केवल अर्थव्यवस्था के लिए घातक है बल्कि ये मानव जीवन और समाज को भी कलंकित करने वाली है। ऐसे मामलों में सख्ती से कदम उठाए जाने की जरूरत है। कोर्ट ने कहा कि नौ सालों के वक्फे में केस का फैसला हो जाना चाहिए था। लेकिन ऐसा हो नहीं सका। ऐसे में आरोपी को जेल में रखना गलत है। धीमी न्यायिक प्रक्रिया खुद एक सजा है।

मामले के अनुसार डायरेक्टरेट ऑफ रेवेन्यु इंटेलीजेंस ने IPC की धारा 9 ए, 21, 23, 25 ए के तहत केस दर्ज किया था। एजेंसी को सूचना मिली थी कि दिल्ली का एक सिंडिकेट बड़े पैमाने पर नशीले पदार्थों की तस्करी में लिप्त है। एक्सपोर्ट कंसाइनमेंट के जरिए ये तस्करी की जा रही थी। ऐसी ही एक खेप एयर कार्गो कांप्लेक्स में मिली थी। ये मलेशिया भेजी जानी थी। एजेंसी को वहां से 151.980 किलो सफेद क्रिस्टल पाउडर की खेप मिली थी। उसे NDPS एक्ट के तहत जब्त कर लिय़ा गया था। रिकवरी के बाद सिंडिकेट के अड्डे पर रेड हुई।

एजेंसी का दावा है कि एक्सपोर्ट से जुड़े डाक्युमेंट्स याचिकाकर्ता की तरफ से उपलब्ध कराए जाने थे। इसके लिए उसे 3 लाख पर खेप का भुगतान हुआ। याचिकर्ता ने अपने बयान में कहा कि 1996-97 में वह यूनाइटेड कार्गो से जुड़ा था। उसके साथ काम करने वाले कुलविंदर सिंह के जरिए उसकी मुलाकात परमजीत सिंह गुलाटी से हुई। उसने उसे बताया कि वह नारकोटिक्स पदार्थों का एक्सपोर्ट करता है। उसने गुलाटी के साथ मिलकर इनका एक्सपोर्ट करना शुरू कर दिया। उसे 20 जुलाई 2012 को अरेस्ट किया गया था। 2013 में उसकी बेल रिजेक्ट हुई।