उत्तराखंड में इन दिनों आदमखोर बाघों का आतंक है। इसके कारण उत्तराखंड के 24 गांवों में शाम सात से सुबह छह बजे तक कर्फ्यू लगा दिया गया है। जिला प्रशासन ने इन गांवों में विद्यालयों और आंगनबाड़ी केंद्र अग्रिम आदेश तक बंद करने के निर्देश दिए हैं। राज्य में बाघों का आतंक सबसे ज्यादा पौड़ी जिले के रिखणीखाल और धूमाकोट विकासखंड के तहत आने वाले गांवों में है। इन गांवों की तादाद दो दर्जन के लगभग है। यहां पर प्रशासन ने रात्रिकालीन कर्फ्यू लगाया है।
पौड़ी के जिलाधिकारी डा आशीष चौहान ने इस संबंध में आदेश जारी किए। इन दो विकासखंडों में पिछले पांच दिनों में बाघ ने दो व्यक्तियों को मौत के घाट उतार दिया है। जिनमें कालागढ़ टाइगर वन प्रभाग के नजदीक स्थित नैनीडांडा विकासखंड के ग्रामसभा उम्टा के सिमली तल्ली गांव के रहने वाले 73 साल के रणवीर सिंह नेगी तथा डल्ला गांव के 72 साल के एक व्यक्ति को बाघ ने मौत के घाट उतार दिया था। दोनों घटनास्थल एक दूसरे से 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इससे क्षेत्र के बाशिंदों में भय का माहौल है। बाघों द्वारा फिर से आसपास के ग्रामीणों पर हमला किए जाने की आशंका को देखते हुए अग्रिम आदेश तक रात्रि कर्फ्यू लगाया गया है।
रिखणीखाल और धूमाकोट तहसील के करीब दो से तीन दर्जन गांव आदमखोर बाघों के भय और आतंक से प्रभावित हैं। पौड़ी के जिलाधिकारी ने रिखणीखाल और धूमाकोट के तहसीलदारों को अगले आदेश तक प्रभावित क्षेत्रों में ही तैनात रहने के निर्देश दिए हैं। पौड़ी के जिलाधिकारी ने जिले के मुख्य पशु चिकित्साधिकारी को स्थानीय ग्रामीणों को कर्फ्यू के दौरान उनके पशुओं के लिए चारा मुहैया कराने के आदेश दिए हैं ताकि गांव वालों को अपने पशुओं के चारे के लिए जंगलों में ना जाना पड़े। पौड़ी गढ़वाल जिले के जिन गांवों में कर्फ्यू लगाया गया है उनमें जूई, द्वारी, कांडा, डल्ला मेलधार, ख्यूंणाई मल्ली, ख्यूंणाई बिचली उम्टा, सिमडी तल्ली घोड़ाकंद, सिमली मल्ली, क्वीराली, तोल्यूं, गाड़ियों, कोटडी ख्यूंणाई तल्ली, चमाडा सहित कई अन्य गांव शामिल हैं।
जिलाधिकारी पौड़ी गढवाल ने लैंसडोन के उपजिलाधिकारी को बाघ प्रभावित क्षेत्रों में ऐसे परिवारों और घरों को चिह्नित करने के निर्देश दिए है जो बाघ के हमलों से सबसे ज्यादा संवेदनशील है। पौड़ी जिले के नैनीडांडा विकासखंड में धूमाकोट, रिंगल्टी, कसाना, बडोल गांव, खुटिंडा सहित दर्जन भर गांवों में आदमखोर बाघों का आतंक है। उत्तराखंड में बाघों की संख्या 2019 की गणना के अनुसार 422 थी। 2014 में राज्य में बाघों तादाद 340 थी।
इस तरह लगातार उत्तराखंड में बाघों की तादाद बढ़ रही है। क्योंकि बाघों के लिए उत्तराखंड के जंगलों का वातावरण अनुकूल है। अभी बाघों की गणना इस साल होनी है, बाघों की तादाद और अधिक बढ़ने की उम्मीद है। उत्तराखंड में जिस तेजी से बाघों की तादाद लगातार बढ़ रही है, उसी तुलना में जंगल से सटे हुए गांवों में स्थानीय लोगों पर बाघों के हमले भी बढ़ रहे हैं।
उत्तराखंड के सभी तेरह जिलों नैनीताल, बागेश्वर, चमोली, उत्तरकाशी, अल्मोड़ा, उधमसिंह नगर, चंपावत, पिथौरागढ़, देहरादून, टिहरी, हरिद्वार, पौड़ी गढ़वाल और रूद्रप्रयाग में बाघों की आवाजाही लगातार बढ़ती जा रही है। इन जिलों में अब तक बाघ स्थानीय ग्रामीणों के कुत्ते, बिल्लियों और अन्य मवेशियों को अपना निशाना बनाते थे, परंतु अब वे सीधे गांव वालों पर हमला कर रहे हैं। इस तरह उत्तराखंड के बाघ आदमखोर बनते जा रहे हैं, जो स्थानीय आबादी के लिए एक बड़े खतरे का संकेत है।
प्रदेश के वन मंत्री सुबोध उनियाल का कहना है कि वन विभाग के अधिकारियों को बाघों द्वारा ग्रामीणों पर किए जा रहे हमलों की रोकथाम के लिए आवश्यक दिशा निर्देश दिए गए हैं। उत्तराखंड में तीन बाघ आरक्षित उद्यान हैं, जिनमें कालागढ़ बाघ आरक्षित उद्यान, राजाजी बाघ आरक्षित उद्यान, जिम कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान हैं। इन तीनों में बाघों की की तादाद 250 से 300 तक है। जबकि 13 जिलों के सामाजिक वानिकी क्षेत्रों में इनकी तादाद 120 से 145 तक आंकी गई है।