चेन्नई। जे जयललिता के करीबी ओ पन्नीरसेल्वम ने सोमवार को भावुक माहौल में रूंधे गले और डबडबाई आंखों के साथ मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। उनके साथ 30 मंत्रियों ने भी उन्हीं की तरह गमगीन माहौल में शपथ ली। आम तौर पर मुख्यमंत्री के शपथग्रहण समारोह में हर्ष और उल्लास का माहौल होता है, लेकिन यहां का नजारा इसके एकदम उलट था। हर चेहरा गमगीन था और हर कोई भावुक नजर आ रहा था। बहुत से लोगों की आंखों में आंसू थे। सादगी भरे समारोह में 63 साल के ‘श्रीमान भरोसेमंद’ पन्नीरसेल्वम को राज्यपाल के रोसैया ने पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई।

राज्यपाल उन्हें शपथ दिलाएं, इससे पहले पन्नीरसेल्वम ने ‘अम्मा’ के प्रति अपनी आस्था प्रकट करने के लिए जयललिता का एक छोटा सा फोटो निकाला और उसे अपने सामने रखने के बाद राज्यपाल द्वारा पढ़ी गई पद और गोपनीयता की शपथ को दोहराया। इस दौरान उन्होंने अपनी आंखों से छलक आए आंसुओं को पोंछा। मुख्यमंत्री के साथ जिन 30 मंत्रियों ने शपथ ली, उनके चेहरों पर उदासी साफ देखी जा सकती थी। शपथ लेने मंच पर आए कई मंत्रियों की आंखों में आंसू थे। माहौल इस कदर गमगीन था कि शपथ लेने वाले नेताओं को न तो किसी ने बधाई दी और न ही मुस्कुराकर अभिनंदन किया। एक बार भी कहीं कोई ताली नहीं बजी। यहां तक जब शपथ लेने के बाद राज्यपाल ने रस्मी तौर पर मुख्यमंत्री को बधाई दी तो भी पन्नीरसेल्वम काफी उदास दिख रहे थे और राज्यपाल उन्हें ढांढस बधाते नजर आ रहे थे। यह स्पष्ट है कि नई सरकार ने यह कार्यक्रम किसी समारोह की बजाय एक प्रक्रिया के रूप में कहीं अधिक सख्ती से मनाया।

हाल में मौजूद लोगों की हर गतिविधि और अंदाज इस बात की याद दिला रहे थे कि उनकी प्रिय ‘अम्मा’ जयललिता सैकड़ों किलोमीटर दूर बंगलूर की एक जेल में बंद हैं। जयललिता को उनके समर्थक स्नेह से ‘अम्मा’ या ‘पुरात्ची तालैवी’ के नाम से पुकारते हैं।

राज्य सरकार के प्रोटोकॉल विभाग और राजभवन सचिवालय ने पूरे शपथ ग्रहण समारोह को गोपनीय रखा था, शायद यह मौजूदा हालात के मद्देनजर मुख्यमंत्री के निर्देश पर किया गया था। राज्य में अन्नाद्रमुक के कार्यकर्ता प्रदर्शन कर रहे हैं। विपक्ष के नेताओं ने बताया कि उन्हें भी शपथ ग्रहण समारोह का न्योता नहीं भेजा गया। यहां तक कि राजभवन में शपथ ग्रहण समारोह भी स्पष्ट कार्यक्रम के मुताबिक आयोजित नहीं किया गया। समारोह के आयोजन को लेकर अटकलों और अफवाहों का बाजार सुबह से ही गर्म था। आखिरी क्षणों में जाकर मद्रास हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को न्योता भेजा गया। इस कार्यक्रम के लिए राजभवन अधिकारियों ने मीडिया को भी नहीं बुलाया।

यह शपथ ग्रहण समारोह 2001 के बाद संभवत: सबसे सादे तरीके से मनाया गया जब ऐसी ही स्थिति में पन्नीरसेल्वम मुख्यमंत्री बने थे। पन्नीरसेल्वम के राजनीतिक करिअर में यह दूसरा मौका है जब उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है। इससे पहले साल 2001 में कुछ इसी तरह के हालात में उन्होंने मुख्यमंत्री का पदभार संभाला था। उस वक्त सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जयललिता को पद छोड़ना पड़ा था और उन्होंने अपने इसी वफादार साथी को इस जिम्मेदारी के लिए चुना था।

राजभवन की ओर से जारी बयान के अनुसार नए मुख्यमंत्री ने अपने पास गृह व कुछ उन दूसरे विभागों को रखा है जो पहले जयललिता के पास थे। पन्नीरसेल्वम ने अपने पास वित्त और लोकनिर्माण विभाग भी रखा है। अन्नाद्रमुक के कोषाध्यक्ष 53 वर्षीय पन्नीरसेल्वम को रविवार को सर्वसम्मति से अन्नाद्रमुक विधायक दल का नेता चुना गया था।

किसान और चाय की दुकान के मालिक से तमिलनाडु में सत्ता के केंद्र फोर्ट सेंट जार्ज तक का पन्नीरसेल्वम का सफर कई अप्रत्याशित मोड़ों से गुजर कर यहां तक पहुंचा है। राजनीतिक हलकों मे ‘ओपीएस’ के नाम से मशहूर नए मुख्यमंत्री ने ऐसे समय में पद भार संभाला है जब उनकी पार्टी और पार्टी प्रमुख जयललिता मुश्किल दौर से गुजर रही हैं। 13 साल पहले भी ऐसी ही स्थिति पैदा हुयी थी और उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया था।

जयललिता ने 2001 में उन्हें अपना उत्तराधिकारी चुनकर लोगों को चौंका दिया था। उस समय तांसी भूमि घोटाले में दोषसिद्धि के बाद उन्हें मुख्यमंत्री का पद छोड़ना पड़ा था। तब मुख्यमंत्री बनने के बाद पन्नीरसेल्वम ने उस कुर्सी पर बैठकर काम नहीं करने का फैसला किया था, जिस पर उनकी ‘श्रद्धेय’ नेता बैठा करती थीं। उन्होंने मुख्यमंत्री के बजाय प्रहरी की भूमिका निभाई और जयललिता के उस मामले में बरी होने पर सहर्ष पद छोड़ दिया। इस बार भी अपनी वफादारी की एक बार फिर पुष्टि करते हुए उन्होंने मुख्यमंत्री के लिए बने विशेष कक्ष में नहीं जाने और अपने पुराने कार्यालय से ही काम करने का फैसला किया है।

मौजूदा विधानसभा में थेनी जिले के बोदीनयाकनूर विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले पन्नीरसेल्वम साधारण पृष्ठभूमि से सत्ता के शीर्ष तक पहुंचे हैं। उनके परिवार की अब भी चाय की दुकान है जिसे कभी वे चलाया करते थे। वे किसान भी थे और उन्होंने अपने राजनीतिक करिअर की शुरुआत पेरियाकुलम नगरपालिका से निर्वाचन के साथ की। वे 1996-2001 के दौरान नगरपालिका के अध्यक्ष बने। वे 2001 के चुनावों में पहली बार राज्य विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए और जयललिता ने सीधे उन्हें राजस्व मंत्री बनाया।