Teachers Day 2024: आज 5 सितंबर के दिन पर पूरा देश शिक्षक दिवस मना रहा है। हर साल इस दिन शिक्षकों के लिए समर्पित करते हुए ही मनाया जाता रहा है। यह मुख्य तौर पर पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली के विचारों से जुड़ा है, जो स्वयं भी एक महान शिक्षक थे। एक बार उनके छात्रों ने ही उनका जन्मदिन मनाने का सोचा था, जिसके बाद डॉक्टर राधा कृष्णन ने कहा था कि मेरा जन्मदिन अलग से मनाने की बजाय अगर शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाएगा तो मुझे गर्व होगा। और यहीं से शिक्षक दिवस समारोह की नींव पड़ गई थी।
ध्यान देने वाली बात यह है कि पूरी दुनिया में जहां टीचर्स-डे 5 अक्टूबर को मनाया जाता है, वहीं भारत में इसे 5 सितंबर के दिन मनाया जाता है। यह देश के पहले वाइज प्रेसिडेंट और दूसरे प्रेसिडेंट डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन डॉ. राधाकृष्णन का जन्म हुआ था और उनके प्रति सम्मान को प्रकट करते हुए आज से कई साल पहले इस दिन की शुरुआत हुई थी।
शिक्षकों के सम्मान पर दिया जोर
डॉ राधाकृष्णनन की बात करें तो उन्होंने अपने जीवन के अहम 40 साल एक शिक्षक के तौर पर बिताए थे। उनका जोर हमेशा ही इस बात पर रहा कि देश के शिक्षकों को जरूरी सम्मान मिले। उनका कहना था कि एक सच्चा शिक्षक समाज को सही दिशा देने का काम करता है और शिक्षक ही व्यक्ति को विपरीत परिस्थितियों का सामना करना सिखाते हैं। डॉक्टर राधाकृष्णन का कहना था कि शिक्षक जीवन संवारने में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।
बता दें कि साल 1994 में यूनेस्को ने शिक्षकों के सम्मान में 5 अक्टूबर को टीचर्स डे मनाने का ऐलान किया था। रूस जैसे कई देशों का टीचर्स डे 5 अक्टूबर को ही होता है। ऑस्ट्रेलिया, चाइना, जर्मनी, बांग्लादेश, श्रीलंका, यूके, पाकिस्तान, ईरान में भी टीचर्स डे अलग-अलग दिन मनाया जाता है।
पूर्व राष्ट्रपति का जीवन परिचय़
बता दें कि डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर, 1888 को आंध्र प्रदेश के एक छोटे से शहर में हुआ था। उन्होंने मद्रास के क्रिश्चियन कॉलेज से अपनी पढ़ाई पूरी की थी। डॉ. कृष्णन ने मैसूर विश्वविद्यालय और कलकत्ता विश्वविद्यालय जैसे कई विश्वविद्यालयों में प्रोफेसर के रूप में भी काम किया। उन्हें उनके दार्शनिक और बौद्धिक प्रयासों के लिए ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में पूर्वी धर्म और नैतिकता के स्पैलिंग प्रोफेसरशिप से सम्मानित किया गया था।
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने राजनीति में भी अहम भूमिका निभाई थी। उन्होंने 1949 से 1952 तक सोवियत संघ में भारतीय राजदूत के रूप में कार्य किया। वे 1952 में भारत के उपराष्ट्रपति बने और 1962 तक इस पद पर बने रहे। 13 मई 1962 से 13 मई 1967 तक वे भारत के राष्ट्रपति रहे।