स्विस लीक, पनामा पेपर्स लीक, पैराडाइज पेपर्स लीक और मॉरिशस से मिले कई दस्तावेजों, जिनमें 2 लाख के करीब ईमेल, बैंक स्टेटमेंट आदि हैं, उनसे पता चला है कि विभिन्न कॉरपोरेट सेक्टर्स द्वारा मॉरिशस में निवेश कर बड़ी संख्या में टैक्स बचत की गई। दरअसल कई कॉरपोरेट कंपनियों ने अपनी सहयोगी मल्टीनेशनल कंपनियों को ‘कैपिटल गेन टैक्स’ की सुविधा का फायदा पहुंचाया है। इससे भारत को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के मामले में काफी नुकसान उठाना पड़ा।

18 देशों के संयुक्त इंटरनेशनल कंसोर्टियम ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट और द इंडियन एक्सप्रेस ने एक ऑफशोर स्पेशलिस्ट फर्म कॉनेयर्स डिल एंड पेयरमैन द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़े का विश्लेषण किया है। इस विश्लेषण से पता चला है कि भारत और मॉरिशस के बीच साल 1982 में Double Taxation Axoidance Agreement (DTAA) नामक संधि हुई थी। इस संधि के तहत कोई कंपनी टैक्स रेजिडेंसी के लिए आवेदन करती है तो उसे कैपिटल गेन्स टैक्स नहीं देना होगा।

यही वजह रही कि इस संधि के चलते मॉरिशस, भारत में निवेश के लिए सबसे पसंदीदा चैनल बनकर उभरा। बीते 33 सालों के दौरान कई आपत्तियों के बावजूद यह संधि चलती रही और अब 10 मई, 2016 को संधि से उक्त प्रावधान खत्म किया गया है। इसके बाद मॉरिशस से भारत में होने वाले निवेश पर भी कैपिटल गेन्स टैक्स लगना शुरू कर दिया है। बीते दो सालों से यह व्यवस्था अस्थायी रुप से लागू थी, लेकिन आगामी अप्रैल, 2019 से यह व्यवस्था स्थायी हो गई है।

गौरतलब है कि अब भारत में मॉरिशस से होकर आने वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में भारी गिरावट आयी है और साल 2018-19 के मुकाबले यह 44% तक घट गया है। रिकॉर्ड के अनुसार, पैराडाइज पेपर्स लीक से मिली जानकारी के अनुसार, रेलीगेयर इंटरप्राइजेज लिमिटेड ने एक अन्य कंपनी में निवेश किया था। जिसे संदिग्ध माना जा रहा है।

हालांकि मॉरिशस के वित्त मंत्री ने उक्त आरोपों को खारिज कर दिया है। वहीं भारतीय वित्त मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि भारत ने साल 1993 में दोनों देशों के बीच हुई संधि में बदलाव की कोशिश की थी, लेकिन मॉरिशस के विरोध चलते यह नहीं पाया था। अब 2016 में जाकर मॉरिशस और भारत की सरकारें इस संधि को बदलने पर राजी हो गए हैं।