Farmers Protest: पंजाब के गांवों से दिल्ली आंदोलन के लिए निकले किसान हरियाणा की सीमाओं पर डटे हुए हैं। वह दिल्ली में एंट्री करने की कोशिश में जुटे हुए हैं। वहीं, पुलिस उन सभी को आगे बढ़ने से रोकने का पूरा प्रयास कर रही है। किसान एमएसपी और स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को लागू करने की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं। कांग्रेस 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले यह वादा कर रही है कि उनकी सरकार बनते ही स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करेगी। हालांकि, उनकी सरकार ने यह प्रस्ताव साल 2010 में ठुकरा दिया था।

सिफारिश में क्या था

डॉ. स्वामीनाथन की अध्यक्षता वाले राष्ट्रीय किसान आयोग ने सिफारिश की थी कि एमएसपी उत्पादन की वेटेड औसत लागत से कम से कम 50 फीसदी से ज्यादा होनी चाहिए। स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश के तहत एमएसपी को 50 फीसदी से ज्यादा रखने की मांग की गई थी। यह फैसला इसलिए लिया गया था ताकि छोटे किसानों को उनकी फसल का सही दाम मिल सके। साथ ही, कहा गया कि एमएसपी केवल कुछ ही फसलों तक सिमट कर नहीं रहनी चाहिए। इसमें सही गुणवत्ता वाले बीजों को भी सस्ते दामों पर मुहैया कराने का प्रस्ताव दिया गया।

हालांकि, जब तत्कालीन यूपीए सरकार द्वारा किसानों के लिए राष्ट्रीय नीति 2007 को आखिरी रूप दिया गया था तो इस सिफारिश को लिया ही नहीं गया। इसमें कहा गया कि यह केवल प्रदर्शनकारी किसानों की मांगों की वजह से बनी है। समाचार एजेंसी एएनआई ने यूपीए सरकार के दौरान एमएसपी को लेकर की गई स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश के संबंध में पूछे गए सवाल के गए जवाब की एक कॉपी शेयर की है।

यूपीए सरकार ने सवाल का क्या जवाब दिया

16 अप्रैल, 2010 को राज्यसभा में स्वामीनाथ आयोग की इस सिफारिश को लेकर भारतीय जनता पार्टी के सांसद प्रकाश जावड़ेकर ने यूपीए सरकार से सीधा सवाल किया था। सवाल यहा था कि ‘क्या सरकार ने किसानों को लाभकारी कीमतें देने की स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें स्वीकार कर ली हैं, अगर हां तो उसकी डिटेल दें और नहीं तो इसका कारण बताएं।

इसके जवाब में तत्कालीन कृषि राज्य मंत्री केवी थॉमस ने 2010 में एक लिखित उत्तर में संसद को बताया था, ‘प्रोफेसर एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में राष्ट्रीय किसान आयोग ने सिफारिश की है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) उत्पादन की भारित औसत लागत से कम से कम 50 प्रतिशत अधिक होना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस सिफारिश को स्वीकार नहीं किया गया है। सिफारिशों को मानने का मतलब होगा कि बाजारों को तबाह कर देना। साथ ही, उन्होंने आगे कहा कि एमएसपी और उत्पादन लागत को तकनीकी आधार पर जोड़ना कई मामलों में उल्टा असर भी डाल सकता है।