हाथ से मैला साफ करने और इस दौरान सफाईकर्मियों की मौत का सिलसिला रुक नहीं रहा है। ऐसे में स्वच्छ भारत मिशन धरातल पर सफल होने के दावों पर सवाल उठते नजर आ रहे हैं। हाल ही में देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में तीन सफाईकर्मियों की मौत हो गई। ये सफाईकर्मी एक हाउसिंग सोसाइटी में सेप्टिक टैंक की सफाई करने उतरे थे। बीते दिनों एनीसीपी के राज्यसभा सांसद एमपी वंदना हेमंत चव्हाण के सवाल का जवाब देते हुए सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने बताया कि 2016 और नवंबर 2019 के बीच देश में सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई के दौरान 282 सफाई कर्मचारियों की मौत हुई है।
सबसे ज्यादा 40 मौत तमिलनाडु में हुई है जबकि हरियाणा में 31सफाईकर्मियों की मौत हुई है। राजधानी दिल्ली और गुजरात में 30 लोगों की मौत हुई है जबकि महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में यह आंकड़ा 27 है। जबकि साल 2016 में यह आंकड़ा 50 था। 2017 में सेप्टिक टैंक और सीवरों में दम घुटने के कारण 83 सफाई कर्मचारियों की मौत हुई थी। साल 2018 में 66 मौतें दर्ज की गईं। नवंबर 2019 तक, देश भर से रिपोर्ट की गई मौत की संख्या 83 थी। यह आंकड़े पुलिस द्वारा दर्ज किए गए एफआईआर पर आधारित हैं।
आंकड़े यहीं खत्म नहीं होते हैं हाथ से मैला धोने की प्रथा को खत्म करने को लेकर काम करने वाली संस्था सफाई कर्मचारी आंदोलन (SKA) का कहना है कि मौत के वास्तविक आंकड़े आधिकारिक रिपोर्ट की तुलना में अधिक हो सकती है। सफाई कर्मचारी आंदोलन साल 2000 के बाद से मौत के आंकड़े 1,760 बताए गए हैं।
द प्रिंट की रिपोर्ट के मुताबिक 1992 में किए गए एक सर्वेक्षण में 600,000 मैनुअल मैला ढोने वालों की पहचान की गई थी। 2002-03 में MSJE द्वारा घोषित संशोधित सर्वेक्षण के आंकड़ों में यह संख्या लगभग 800,000 थी। 2013 में अचानक संख्या घटकर सिर्फ 13,639 रह गई। अनुमान लगाया गया कि स्वच्छ भारत मिशन के तहत उठाए गए कई सकारात्मक कदमों के बावजूद, यह आंकड़ा 2018 में 170 जिलों और 18 राज्यों में किए गए एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण के अनुसार तीन गुना बढ़कर 42,303 हो गया।
उत्तर प्रदेश (19,712), महाराष्ट्र (7,378), उत्तराखंड (6,033) राजस्थान (2,590) और आंध्र प्रदेश (1,982) के बाद कर्नाटक 1,754 हाथ से मैला धोने वालों को लेकर छठे स्थान पर है। ऐसे में जब देश के अधिकांश शहर खुद को स्वच्छ भारत मिशन के तहत साफ सुथरा शहर होने तमगा लेने की कोशिश में हैं तो इसके उलट कई शहरों में हाथ से मैला धोने का काम अभी भी जारी है और हर साल कई सफाईकर्मी इस दल-दल में अपना दम तोड़ रहे हैं।