पिछले कुछ समय से एनडीए के कुछ घटक अलग जरूर हो गए लेकिन बीजेपी की पैठ में कोई कमी नहीं आई है। आंकड़े दिखाते हैं कि बीजेपी की स्थिति ग्रामीण भारत और गैरसवर्णों में और ज्यादा सुधर गई है। एक तरफ महाराष्ट्र में शिवसेना ने बीजेपी का साथ छोड़ा तो केंद्र में शिरोमणि अकाली दल ने भी किनारा कर दिया। उम्मीद है कि इस बार पंजाब के चुनाव में भी अकाली दल अलग चुनाव लड़ेगा। केंद्र में सहयोगी रहे एलजेपी ने बिहार में अलग ही चुनाव लड़ने का फैसला किया। इसके बावजूद बीजेपी के अपने जनाधार में कमी नहीं आई है।
कई पार्टियों के साथ छोड़ने के बावजूद बीजेपी में विश्वास इसलिए बना हुआ है क्योंकि उसकी अकेले ही आम चुनावों में 303 सीटें और 37.4 फीसदी वोट शेयर था। पहले बीजेपी को ब्राह्मण और बनिया की पार्टी के रूप में जाना जाता था लेकिन अब समाज के और भी कई वर्ग इसके समर्थन में दिखाई देते हैं। साल 2010 के बाद ओबीसी, आदिवासियों और दलितों का रुझान भी बीजेपी की ओर बढ़ गया। बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में बीएसपी को केवल जाटवों की पार्टी बताकर गैरजाटव समाज के बीच अपनी पैठ बना ली और उनका समर्थन हासिल कर लिया। लोकनीति सीएसडीएस के सर्वे के मुताबिक बीजेपी ने निचले ओबीसी पर ध्यान दिया।
अगर भौगोलिक स्तर पर बात करें तो भी बीजेपी का जनाधार दक्षिण और उत्तर-पूर्व में बढ़ता ही दिखाई देता है। जहां पहले शहरी अपर क्लास लोग ही बीजेपी का समर्थन करते थे वहीं अब बीजेपी ने ग्रामीण-शहरी, अमीर-गरीब के बीच भी ब्रिज का काम करना शुरू कर दिया है जिसका उसे फायदा मिल र हा है। डेटा के मुताबिक 2014 में बीजेपी को 24 फीसदी गरीब सपोर्ट करते थे जो कि अब बढ़कर 36 फीसदी हो गया है। लोअर क्लास के 31 फीसदी लोग बीजेपी के पक्ष में थे और पिछले 6 साल में यह बढ़कर 36 फीसदी हो गया है। अपर और मिडल क्लास में भी लगभग 4 से 6 फीसदी की वृद्धि हुई है।
ग्रामीण भारत में भी बीजेपी की पैठ बढ़ गई है। 2014 के चुनाव में गांवों में बीजेपी को 30 फीसदी लोगों का समर्थन मिला था जबकि 2019 में यह बढ़कर 38 फीदी हो गया। सेमी अर्बन इलाकों मे 30 फीसदी से बढ़कर 33 प्रतिशत हो गया। शहरी इलाकों में पहले से भी बीजेपी का समर्थन करने वाले लोग काफी थे फिर भी 2014 के मुकाबले 2019 में दो फीसदी की बढ़ोतरी देखी गई। यह 39 फीसदी से बढ़कर 41 फीसदी हो गया है।