सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को पूर्व जस्टिस मार्कंडेय काटजू को सौम्या रेप और मर्डर केस में कोर्ट के फैसले की आलोचना करने पर समन जारी किया है। कोर्ट ने उनसे व्यक्तिगत रूप से पेश होने और कानून को लेकर कौन सही है, इस पर डिबेट करने की चुनौती भी दी है। कोर्ट ने पहली बार इस तरह से समन जारी किया है। जस्टिस रंजन गोगोई, पीसी पंत और यूयू ललित की बैंच ने मार्कंडेय काटजू के ब्लॉग पर संज्ञान लेते हुए यह समन जारी किया। काटजू ने ब्लॉग में सौम्या रेप और मर्डर केस में कोर्ट के फैसले की आलोचना की थी। उन्होंने लिखा था कि यह फैसला एक बड़ी गलती है और दशकों तक कानून की दुनिया में रहे जजों से इस तरह की उम्मीद नहीं थी। बैंच ने महसूस किया कि वे जस्टिस काटजू का बड़ा सम्मान करते हैं। इसलिए चाहते हैं कि वे व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में आएं और खुली अदालत में बहस करें कि उन्हें ऐसा क्यों लगा कि उनका फैसला संवैधानिक रूप से गलतियों से भरा था।
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बैंच ने सौम्या केस में दोषी गोविंदस्वामी की फांसी की सजा को सबूतों की कमी के आधार पर रद्द कर दिया था। जस्टिस काटजू ने 17 सितंबर को ब्लॉग में लिखा कि बैंच ने मान लिया कि सौम्या ट्रेन से कूदी थी ना कि गोविंदस्वामी ने उसे धक्का दिया था। उन्होंने लिखा, ”लॉ कॉलेज का एक छात्र भी जानता है कि अफवाही सबूत अस्वीकार्य होते हैं।” ब्लॉग में जस्टिस काटजू ने फैसले पर खुली अदालत में बहस करने की जरुरत भी बताई थी।
गौरतलब है कि एक फरवरी 2011 को केरल में 23 साल की सौम्या के साथ रेप हुआ था। त्रिशूर स्थित फास्ट ट्रैक अदालत ने गोविंदास्वामी को मौत की सजा सुनाई थी। बाद में केरल उच्च न्यायालय ने उसकी मौत की सजा को बहाल रखा था। शीर्ष अदालत ने गुरुवार को अपने फैसले में कहा था कि आरोपी का इरादा लड़की की हत्या का नहीं था। इसने कहा था कि क्योंकि यह साबित नहीं हुआ है कि आरोपी का इरादा हत्या करने का था, इसलिए उसे हत्या का दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
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