सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सोमवार को एक ऐतिहासिक फैसले में व्यवस्था दी कि कोई सांसद या विधायक संसद/विधानसभा में वोट/भाषण के संबंध में रिश्वतखोरी के आरोप में अभियोजन से छूट का दावा नहीं कर सकता है। कोर्ट ने वोट के बदले नोट मामले में अपने पिछले फैसले को बदल दिया। कोर्ट ने अनुच्छेद 105 का हवाला देते हुए इस मामले में सांसदों को किसी तरह की राहत देने से इनकार कर दिया और कहा कि किसी को घूसखोरी की छूट नहीं दी जा सकती है। ऐसे में सांसदों को कानूनी संरक्षण से छूट की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए।
CJI डी.वाई. चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली पीठ ने सुनाया फैसला
इस फैसले को खारिज करने वाली सात न्यायाधीशों की पीठ का नेतृत्व भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने किया। पीठ ने अक्टूबर 2023 के पहले सप्ताह में दो दिनों तक दलीलें सुनी थीं। सुप्रीम कोर्ट की सात-न्यायाधीशों की पीठ ने अपने सर्वसम्मत विचार से 1998 के पीवी नरसिम्हा राव मामले से जुड़े फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें सांसदों/विधायकों को संसद में मतदान के लिए रिश्वतखोरी के खिलाफ मुकदमा चलाने से छूट दी गई थी।
एएनआई से बात करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने कहा, “आज सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संविधान पीठ ने कहा कि अगर कोई सांसद राज्यसभा चुनाव में सवाल पूछने या वोट देने के लिए पैसे लेता है, तो वे अभियोजन से छूट का दावा नहीं कर सकते। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वोट देने के लिए पैसे लेना या प्रश्न पूछना भारतीय संसदीय लोकतंत्र की कार्यप्रणाली को नष्ट कर देगा…”
क्या था संविधान का अनुच्छेद 194(2)
संविधान के अनुच्छेद 194(2) में कहा गया है: “किसी राज्य के विधानमंडल का कोई भी सदस्य विधानमंडल या उसकी किसी समिति में अपने द्वारा कही गई किसी बात या दिए गए वोट के संबंध में किसी भी अदालत में किसी भी कार्यवाही के लिए उत्तरदायी नहीं होगा, और कोई भी व्यक्ति किसी भी रिपोर्ट, पेपर, वोट या कार्यवाही के ऐसे विधानमंडल के सदन के अधिकार के तहत प्रकाशन के संबंध में इस तरह उत्तरदायी नहीं होगा। अनुच्छेद 105(2) संसद सदस्यों को समान सुरक्षा प्रदान करता है।
1998 का वह फैसला, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने बदल दिया
1998 में पांच जजों की बेंच ने पी.वी. नरसिम्हा राव बनाम राज्य (CBI/SPE) ने इसकी शाब्दिक व्याख्या की और माना कि विधायकों को संसद और विधान सभाओं में अपने भाषण और वोट से जुड़े मामलों में रिश्वत के लिए आपराधिक मुकदमा चलाने से छूट प्राप्त है।
सोमवार को मुख्य न्यायाधीश ने फैसला सुनाते हुए कहा कि रिश्वतखोरी के मामलों में संसदीय विशेषाधिकारों के तहत संरक्षण प्राप्त नहीं है और 1998 के फैसले की व्याख्या संविधान के अनुच्छेद 105 और 194 के विपरीत है।