Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को संविधान की प्रस्तावना से समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष शब्द को हटाने वाली याचिका पर कहा कि इन दोनों शब्दों को संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा माना गया है। कोर्ट ने कई बार अपने फैसलों में इस पर जोर भी दिया है। जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की बेंच के सामने दलील देते हुए वकील विष्णु शंकर जैन ने कहा कि 1976 में संविधान में किया गया 42वें संशोधन पर संसद में कभी भी बहस नहीं हुई।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस खन्ना ने कहा कि इस मामले पर लंबी बहस हो चुकी है। उन्होंने कहा कि जैन इन शब्दों की अलग-अलग व्याख्याएं हैं। यहां तक कि हमारे अदालतों ने भी इन्हें बार-बार संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा माना है। सुनवाई के दौरान जस्टिस खन्ना ने याचिकाकर्ताओं से पूछा, ‘आप नहीं चाहते कि भारत धर्मनिरपेक्ष हो।’ वकील विष्णु शंकर जैन ने जवाब दिया, “हम यह नहीं कह रहे हैं कि भारत धर्मनिरपेक्ष नहीं है। हम इस संशोधन को चुनौती दे रहे हैं।”
याचिकार्ता के वकील ने क्या दलील दी
याचिकाकर्ता के वकील जैन ने कहा कि भीमराव अंबेडकर का मानना था कि समाजवाद के शब्द आने से आजादी पर अंकुश लगेगा। जस्टिस खन्ना ने सवाल किया कि क्या आजादी पर अंकुश लगाया गया है। वहीं वकील अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि प्रस्तावना में इन दो शब्दों को जोड़ने से भानुमति का पिटारा खुल गया है। उन्होंने तर्क दिया, ‘हम हमेशा से धर्मनिरपेक्ष रहे हैं।
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इससे एक पिटारा खुल गया है, कल लोकतंत्र शब्द हटाया जा सकता है या कुछ भी किया जा सकता है।’ जस्टिस खन्ना ने जवाब दिया, “उस समय कई कानून पारित किए गए होंगे।” इसके बाद कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई को 18 नवंबर के लिए लिस्ट कर दिया है।
किसने दायर की याचिका
यह याचिका भारतीय जनता पार्टी के नेता सुब्रमण्यम स्वामी और बलराम सिंह की तरफ से दायर की गई है। याचिका में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के समय 1976 में 42वे संविधान संशोधन के जरिये संविधान की प्रस्तावना में समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष शब्द जोड़े जाने की वैधानिकता को चुनौती दी गई है। इसमें कहा गया है कि प्रस्तावना में इन शब्दों को जोड़ना संसद को आर्टिकल 368 के तहत मिली संविधान संशोधन की शक्ति से परे है।