सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक संकट से जूझ रहे अरूणाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू करने से उठे मुद्दों पर प्रदेश के राज्यपाल को नोटिस जारी करने के मामले में शनिवार को अपनी ‘गलती’ स्वीकार करते हुये राज्यपाल ज्योति प्रसाद राजखोवा को जारी अपना नोटिस वापस ले लिया।
न्यायमूर्ति जे एस खेहड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने न्यायिक कार्यवाही में राज्यपाल को ‘पूरी तरह से छूट’ प्राप्त होने संबंधी न्यायालय के पहले के फैसले और कानूनी स्थिति पर विचार के बाद कहा, ‘‘यह (नोटिस जारी करना) हमारी गलती है।’’ इस मामले की सुनवाई शुरू होते ही अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कानूनी स्थिति का जिक्र करते हुए शीर्ष अदालत के 2006 के फैसले का हवाला दिया, जिसमें व्यवस्था दी गयी थी कि राज्यपालों को कानूनी कार्यवाही में शामिल होने के लिए नहीं कहा जा सकता है। संविधान के अनुच्छेद 361 के तहत राज्यपालों को पूरी तरह छूट प्राप्त होने की रोहतगी की दलील का जिक्र करते हुये पीठ ने कहा, ‘‘हम प्रतिवादी संख्या दो (राज्यपाल) को जारी नोटिस वापस लेने को न्यायोचित और उचित मानते हैं।’’
संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर, न्यायमूर्ति पी सी घोष और न्यायमूर्ति एन वी रमण शामिल हैं। पीठ ने इसके साथ ही स्पष्ट किया कि नोटिस वापस लेने का उसका आदेश अरूणाचल प्रदेश के राज्यपाल को उसके समक्ष अपना पक्ष रखने तथा दायर करने से ‘मना नहीं’ करेगा। पीठ ने यह भी कहा कि राज्यपाल की ओर से पहले पेश हुये वरिष्ठ अधिवक्ता सतपाल जैन ने न्यायालय के निर्देश के आधार पर राष्ट्रपति शासन लागू करने से संबंधित सामग्री दाखिल करने का आश्वासन दिया था।