सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को राजनीति के अपराधीकरण को बड़ा मुद्दा बताते हुए इस बात पर आश्चर्य जताया कि दोषी ठहराए गए राजनेता अपनी सजा पूरी करने के बाद विधायिका में कैसे लौट सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने दोषी राजनेताओं की संसद में वापसी पर सवाल उठाते हुए कहा कि वे कानून कैसे बना सकते हैं?
दो जजों की बेंच की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस दीपांकर दत्ता ने कहा, “एक बार जब उन्हें दोषी करार दे दिया जाता है और दोषसिद्धि बरकरार रखी जाती है तो लोग संसद और विधानमंडल में कैसे वापस आ सकते हैं? उन्हें जवाब देना होगा।” उन्होंने कहा कि इसमें हितों का टकराव भी स्पष्ट है क्योंकि ये राजनेता कानूनों की जांच करेंगे।
दोषी ठहराए गए सांसदों और विधायकों के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की मांग
पीठ में जस्टिस मनमोहन भी शामिल थे, जो अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की पेंडिंग जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, जिसमें आपराधिक मामलों में दोषी ठहराए गए सांसदों और विधायकों के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी। याचिका में जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 को भी चुनौती दी गई है, जो जेल की सजा काटने के बाद दोषी राजनेताओं के चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध की अवधि को छह साल तक सीमित करती है और दोषी व्यक्तियों के राजनीतिक दलों के पदाधिकारी होने के मुद्दे को भी चुनौती दी गई है।
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साल 2017 में इस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सांसदों और विधायकों के खिलाफ मामलों की सुनवाई के लिए 10 राज्यों में 12 विशेष अदालतें स्थापित करने का निर्देश दिया था। 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने सांसदों और विधायकों के खिलाफ पेंडिंग मामलों की सुनवाई की निगरानी के लिए उच्च न्यायालयों को विशेष पीठें स्थापित करने को कहा था।
सांसदों/विधायकों से संबंधित लगभग 5,000 आपराधिक मामले पेंडिंग
सोमवार को वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया ने पीठ को बताया कि समय-समय पर दिए गए निर्देशों के बावजूद, सांसदों/विधायकों से संबंधित लगभग 5,000 आपराधिक मामले पेंडिंग हैं। उन्होंने देरी के लिए जिम्मेदार कारकों को भी गिनाते हुए कहा कि विशेष अदालतें अक्सर सांसदों और विधायकों से संबंधित मामलों के अलावा अन्य मामलों की सुनवाई करती हैं, ऐसे में केस बार-बार स्थगित कर दिया जाता है। जिसकी वजह से आरोपी सुनवाई से बचते हैं और गवाहों को समन भेजने में समस्या होती है।
जस्टिस मनमोहन ने कहा कि सामान्यीकरण करना सही नहीं होगा। उन्होंने कहा, “स्थिति का सामान्यीकरण न करें। ट्रायल कोर्ट के गलियारों में चलें। सुनवाई के लिए आए मुवक्किल आपको कोसेंगे और आपको बताएंगे कि 10.30 बजे यह जज अपने चैंबर में चले गए हैं। कृपया हमें बताएं कि वास्तविक कारण क्या है। कोई एक ही निर्देश नहीं दिया जा सकता। कृपया एक कोर्ट का अध्ययन करें , राउज एवेन्यू कोर्ट को ही लें।” पीठ ने अंततः निर्देश दिया कि पेंडिंग मामलों की तत्काल सुनवाई का सवाल उचित पीठ के गठन के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना के समक्ष रखा जाए। पढ़ें- देश-दुनिया की तमाम बड़ी खबरों के लेटेस्ट अपडेट्स