यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं के ‘टू फिंगर टेस्ट’ को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। कोर्ट ने मेघालय सरकार को इस पर पूरी तरह रोक लगाने के आदेश दिए हैं। कोर्ट में एक मामले की सुनवाई के दौरान इस बात पर निराशा व्यक्त की कि सुप्रीम कोर्ट की रोक के बाद भी बलात्कार के मामले में ‘टू फिंगर टेस्ट’ किया जा रहा है। कोर्ट ने इसे महिलाओं की निजता का हनन माना है।
क्या होता है टू-फिंगर टेस्ट?
‘टू फिंगर टेस्ट’ में बलात्कार पीड़िताओं के प्राइवेट पार्ट में दो उंगलियां डाली जाती हैं। इस प्रकिया से डॉक्टर यह पता लगाने की कोशिश करते हैं कि पीड़िता पहले से सेक्सुअली एक्टिव है या नहीं। इस टेस्ट के दौरान प्राइवेट पार्ट के बाहर एक पतली हाइमन की झिल्ली को जांचा जाता है, अगर हाइमन होता है तो माना जाता है कि है कि महिला सेक्सुअली एक्टिव नहीं है। अगर हाइमन में पहले से नुकसान पाया गया तो इससे महिला के सेक्सुअली एक्टिव होने की बात मानी जाता है।
2013 में लगी थी रोक
सुप्रीम कोर्ट ने टू फिंगर टेस्ट पर 2013 में रोक लगाई थी। हालांकि इसके बाद भी कई राज्यों में ऐसे केस सामने आए जब बलात्कार पीड़िताओं की जांच के लिए उनका टू फिंगर टेस्ट किया गया। इसके बाद स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से 2014 में एक गाइडलाइन जारी की गई। इस गाइडलाइन में साफ लिखा गया कि यह टेस्ट पूरी तरह गैरकानूनी है।
कोर्ट ने क्या कहा
चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि इस टेस्ट की हमेशा से निंदा की गई है। इस टेस्टिंग का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं होता है, क्योंकि विज्ञान इस तरह के टेस्ट को फ़ालतू मानती है। विज्ञान का कहना है कि महिलाओं की वर्जिनिटी में हाइमन का पाया जाना सिर्फ एक मिथ्या है, ये किसी भी प्रकार से उचित नहीं है। कोर्ट ने लिल्लू उर्फ राजेश और अन्य बनाम हरियाणा राज्य के मामले में 2013 के एक फैसले को याद करते हुए कहा की बलात्कार पीड़िता पर टू फिंगर टेस्ट उसकी निजता के अधिकार का उल्लंघन करता है। यह मानसिक को चोट पहुंचाने वाला टेस्ट है। सुनवाई में शामिल जस्टिस रविकुमार एवं राजेश बिंडल के द्वारा एक अपील को सुन रहे थे,जिसमें हाई कोर्ट ने एक आरोपी को बलात्कार के लिए दोषी ठहराया था।
बलात्कार पीड़िताओं की कैसे होती है जांच
बलात्कार के मामले में कोर्ट ने पीड़िताओं के फॉरेंसिक जांच के आदेश दिए हैं। हालांकि इसके लिए भी पीड़िताओं की सहमति जरूरी होती है। अगर कोई महिला सीधे डॉक्टर के पास जाती है तो डॉक्टर उसकी जांच से इनकार नहीं कर सकता है। ऐसे केस में डॉक्टर पीड़िताओं के कपड़े, खून के सैंपल, प्राइवेट पार्ट के सैंपल, प्यूबिक हेयर, स्पर्म सैंपल और चोट के निशान आदि के सैंपल लेता है। अगर महिला को कोई नशीला पदार्थ दिया गया हो तो उसके लिए भी जरूरी सैंपल लिए जाते हैं।
‘गाइडलाइन का उल्लंघन करने वाला भी होगा दोषी’
इसके बाद राज्य के महाधिवक्ता अमित कुमार ने झारखंड राज्य बनाम शैलेंद्र कुमार राय उर्फ पांडव राय में दिये गये फ़ैसले का ज़िक्र करते हुए कहा कि 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने ‘टू-फिंगर टेस्ट’ पर रोक लगाते हुए कहा था कि अगर कोई इसका उल्लंघन करता है तो उसे दुराचार का दोषी माना जाएगा। उन्होंने शैलेंद्र कुमार राय केस में दिये गये निर्देशों और संबंधित पत्रों का जिक्र किया। सुनवाई के दौरान स्टेट ऑफिसर ने कोर्ट से कहा कि शैलेंद्र राय केस में दिये गये निर्देशों का सख्ती से पालन करने के लिए विभागीय आदेश जारी किया जाएगा।